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चमन मे जब भी आती हो, बहारें लौट आती है, समन्दर त

चमन मे जब भी आती हो, 
बहारें लौट आती है, 
समन्दर तट पै आती हो, 
तो लहरें छू के जाती है, 
हवाओं मे यूँ लहराके तुम, 
दुपट्टे को‌ न सरकाओ, 
हमे लगता है शायद तुम, 
इशारे से बुलाती हो।

©ब्रजमोहन पांडेय
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