ऐनक ढलती उम्र के साथ जब दृष्टि हुई कमजोर कुछ भी पढ़ने लिखने में नेत्र लगाएँ जोर या फिर दुस्कर हो जाए अक्षर की पहचान और बढ़ा न पाएँ हम अपना खुद का ज्ञान तब ऐनक कहता हमसे ले लो मेरा सहारा दूर करूँगा पल भर में मैं तेरा दुःख सारा संग संग रखना मुझे कभी न जाना भूल कुछ दिन बोझ लगूँगा फिर बन जाऊँगा फूल अच्छे दिन आये मेरे बच्चे हों या बूढ़े दृष्टिदोष से ग्रसित हो सब मुझको ही ढूँढे ऐनक बढ़ा रहा बेखुद सबके रुख की रौनक करे सुरक्षा रात दिन जैसे कोई रक्षक ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #चस्मा