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महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें जो छोड़ द

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें 
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा 

ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैं 
वो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा 

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला 
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा

©विवेक तिवारी
  #मोहब्बत💞

मोहब्बत💞 #शायरी

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