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सोचता हूँ, के कमी रह गई शायद कुछ या जितना था वो का

सोचता हूँ, के कमी रह गई शायद कुछ या
जितना था वो काफी ना था,
नहीं समझ पाया तो समझा दिया होता
या जितना समझ पाया वो काफी ना था,
शिकायत थी तुम्हारी के तुम जताते नहीं
प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं,
अरे मुह्हबत की क्या मैं नुमाईश करता
मेरे आँखों में जितना तुम्हें नजर आया,
क्या वो काफी नहीं था I
सोचता हूँ के क्या कमी रह गई,
क्या जितना था वो काफी नहीं था

©himbhardwaj
  #Aurora सोचता हूँ, के कमी रह गई शायद कुछ या
जितना था वो काफी ना था,
नहीं समझ पाया तो समझा दिया होता
या जितना समझ पाया वो काफी ना था,
शिकायत थी तुम्हारी के तुम जताते नहीं
प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं,
अरे मुह्हबत की क्या मैं नुमाईश करता
मेरे आँखों में जितना तुम्हें नजर आया,
him78bh9419

himbhardwaj

New Creator

#Aurora सोचता हूँ, के कमी रह गई शायद कुछ या जितना था वो काफी ना था, नहीं समझ पाया तो समझा दिया होता या जितना समझ पाया वो काफी ना था, शिकायत थी तुम्हारी के तुम जताते नहीं प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं, अरे मुह्हबत की क्या मैं नुमाईश करता मेरे आँखों में जितना तुम्हें नजर आया, #Poetry #poem

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