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ज़ब भी दी है दस्तक..... मन का दरवाझा बंद ही मिला ह

ज़ब भी दी है  दस्तक..... मन का दरवाझा
बंद ही मिला है.
ज़ब भी गीत  कोई नया कहना चाहा
अनचाहा छंद ही मिला है
मर्गनैनी ढूंढ़ती रही है गंध कस्तूरी की युगो से.
उछली कूदीं कई कई बार फ़िरभी उसे
कुछभी नहीं मिला है
उसे क्या पता वो अबूझ  गंध कस्तूरी की उसी की
नाभि मे  पल  रही है

©Parasram Arora कस्तूरी कुंडल बसे
ज़ब भी दी है  दस्तक..... मन का दरवाझा
बंद ही मिला है.
ज़ब भी गीत  कोई नया कहना चाहा
अनचाहा छंद ही मिला है
मर्गनैनी ढूंढ़ती रही है गंध कस्तूरी की युगो से.
उछली कूदीं कई कई बार फ़िरभी उसे
कुछभी नहीं मिला है
उसे क्या पता वो अबूझ  गंध कस्तूरी की उसी की
नाभि मे  पल  रही है

©Parasram Arora कस्तूरी कुंडल बसे

कस्तूरी कुंडल बसे