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हे मेघ:- हे मेघ तुम किसकी सुनोगे? सुनोगे उन मम्मिय

हे मेघ:-
हे मेघ तुम किसकी सुनोगे? सुनोगे उन मम्मियों की जो तुम्हें कोसती हैं जब तुम ऐन मौके पर जब बच्चा स्कूल जाने को होता है तभी बरसना शुरू कर देते हो या सुनोगे उन किसानों की जो पूरी तैय्यारी में हैं बोबनी की तुम बरसो और हो जाए सब हरा – हरा चहुँओर |

हे मेघ तुम सुनोगे उस चातक की जो अपनी चोंच खोले तांक रहा है ऊपर, प्यासा ना जाने कबसे तुम्हारी पहली बूँद से अपनी प्यास बुझाने को या कॉलेज-कोचिंग से लौट रही उन युवक- युवतियों की जो घर से अपनी मां की बात टाल बिना छाता लिये निकल आये थे अलसुबह | 

मेघ तुम सुनोगे सुदूर जंगल में रहने वाले उन भील-आदिवासियों की जिन्होंने अपने कच्चे घरों की छत पर लगे मिट्टी के खपरेल की उलटावनी कर ली है और हाट बाज़ार से तिरपाल/बरसाती ला ढक दिए हैं वो हिस्से जहाँ से घर के भीतर पड़ सकते हैं पानी के टपके या सुनोगे शहर के उस मकान मालिक की जिसकी छत आज ही डलना है और वो चड़ा रहा है  नारियल प्रसाद सिद्ध देवता पर की तुम न बरसो।

हे मेघ क्या तुम सुनोगे उन मवेशियों की जो दिनभर चरते हैं हरी घांस जो तुम्हारे बरस जाने के बाद उग आती हैं यहाँ वहां हर जगह या सुनोगे उन महिलाओं की जिन्होंने सुबह की हल्की धूप से उम्मीद लगा धो डालें हैं पूरे घर भर के कपड़े |

मेघ तुम सुनोगे नगर पालिका, बिजली विभाग की जिनके महीने भर चले लम्बे रखरखाव की पोल खुल जाती है जब तुम पहले ही दिन जम के बरस जाते हो या फिर सुनोगे उन मक्का-भुट्टे वालों की जो तुम्हारे आने से पहले ही ले आये हैं 50-100 किलो भुट्टे क्यूँ की वो भी कमाना चाहते हैं |

सुनो न मेघ सबका अपना स्वार्थ है, पर तुम निष्पक्ष ही रहना अंततः तुम्हारा मिजाज़ अच्छा रहने से ही तो सब कुछ है,और सुनो तुम गाँव के किसान की पहले सुनना जिसकी आजकल कोई नहीं सुनता | 
वो तुम पर ही तो निर्भर है और हम उस पर, उसे हम अन्नदाता जो कहते हैं सो तुम खुश हो खूब बरसना |
©नगेन्द्र #rain 
#raining 
#weather 
#weatherquotes 
#clouds 
#climate 
#farmer 
#farmerlife
हे मेघ:-
हे मेघ तुम किसकी सुनोगे? सुनोगे उन मम्मियों की जो तुम्हें कोसती हैं जब तुम ऐन मौके पर जब बच्चा स्कूल जाने को होता है तभी बरसना शुरू कर देते हो या सुनोगे उन किसानों की जो पूरी तैय्यारी में हैं बोबनी की तुम बरसो और हो जाए सब हरा – हरा चहुँओर |

हे मेघ तुम सुनोगे उस चातक की जो अपनी चोंच खोले तांक रहा है ऊपर, प्यासा ना जाने कबसे तुम्हारी पहली बूँद से अपनी प्यास बुझाने को या कॉलेज-कोचिंग से लौट रही उन युवक- युवतियों की जो घर से अपनी मां की बात टाल बिना छाता लिये निकल आये थे अलसुबह | 

मेघ तुम सुनोगे सुदूर जंगल में रहने वाले उन भील-आदिवासियों की जिन्होंने अपने कच्चे घरों की छत पर लगे मिट्टी के खपरेल की उलटावनी कर ली है और हाट बाज़ार से तिरपाल/बरसाती ला ढक दिए हैं वो हिस्से जहाँ से घर के भीतर पड़ सकते हैं पानी के टपके या सुनोगे शहर के उस मकान मालिक की जिसकी छत आज ही डलना है और वो चड़ा रहा है  नारियल प्रसाद सिद्ध देवता पर की तुम न बरसो।

हे मेघ क्या तुम सुनोगे उन मवेशियों की जो दिनभर चरते हैं हरी घांस जो तुम्हारे बरस जाने के बाद उग आती हैं यहाँ वहां हर जगह या सुनोगे उन महिलाओं की जिन्होंने सुबह की हल्की धूप से उम्मीद लगा धो डालें हैं पूरे घर भर के कपड़े |

मेघ तुम सुनोगे नगर पालिका, बिजली विभाग की जिनके महीने भर चले लम्बे रखरखाव की पोल खुल जाती है जब तुम पहले ही दिन जम के बरस जाते हो या फिर सुनोगे उन मक्का-भुट्टे वालों की जो तुम्हारे आने से पहले ही ले आये हैं 50-100 किलो भुट्टे क्यूँ की वो भी कमाना चाहते हैं |

सुनो न मेघ सबका अपना स्वार्थ है, पर तुम निष्पक्ष ही रहना अंततः तुम्हारा मिजाज़ अच्छा रहने से ही तो सब कुछ है,और सुनो तुम गाँव के किसान की पहले सुनना जिसकी आजकल कोई नहीं सुनता | 
वो तुम पर ही तो निर्भर है और हम उस पर, उसे हम अन्नदाता जो कहते हैं सो तुम खुश हो खूब बरसना |
©नगेन्द्र #rain 
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