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nagendrachaturve7133
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Nagendra Chaturvedi

शौक़िया लिखैय्या, घुमक्कड़, फक्कड़, हसौड़ और दोस्तों के शब्दों में एक बेहतरीन दोस्त।

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Nagendra Chaturvedi

मैं देखता हूं पशु मेले में बिकने जाते हुए पशु विरोध नहीं करते। महिंद्रा पिकअप में बंधे रहते हैं वह दो फीट लंबी एक छोटी सी रस्सी से, खड़े खड़े करते हैं यात्रा गांव से पशुहाट की ओर।

और उतार दिए जाते हैं हाट में सैंकड़ों की भीड़ में। मालिक करता है अच्छी कीमत मिलने का इंतजार। करते रहते हैं जुगाली और जरूरी जांच के बाद वह बिक जाते हैं और चल पड़ते हैं अपने नए मालिक के घर।

बूढ़े हो जाने पर कोई इनपर ध्यान नहीं देता और हांक दिए जाते हैं यहां वहां। यही मूल अंतर है मानव और पशु में कि पशु विरोध नहीं करते, ना कह पाते हैं अपने मन की बात।

पर मानव सोच सकता है, विरोध कर सकता है, चुनने की आजादी है उसे। पर मानव हो जाता है पशु जब वह विरोध नहीं करता और चुन लेता है हर किसी को बिना जांचे परखे एक लंबे अरसे के लिए।

फिर कोसता रहता है अपने नए चुनाव को जब आशाओं के विपरीत आने लगते हैं रुझान और करता रहता है परिवर्तन का इंतज़ार। बस यही एक मूल अंतर है या बराबरी भी कहें कि एक मौके पर मानव भी हो जाता है हाट बाजार के पशु; जो विरोध नहीं करते।।।
© नगेंद्र

©Nagendra Chaturvedi #Freedom 
#election
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Nagendra Chaturvedi

जीवन बीत रहा है हर दिन ऐसे,
 गर्मी में माटी के घड़े से अपने आप पानी रीत रहा हो जैसे

©Nagendra Chaturvedi #Life

12 Love

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Nagendra Chaturvedi

बस से अपने शहर से सवारी बन कर गुज़र जाने की टीस बहुत बड़ी होती है। जब शहर सो रहा होता है तब मुसाफ़िर जागता रहता है। कंडक्टर की एक आवाज़ कि दस मिनट का स्टॉप है चाय-वाय पीना हो तो पी लो। तो बरबस ही यात्री उतर आता है नीचे तफरी करता है चाय भी फिर पी ही लेता है। सोचता है कितना पास है घर पैदल कितनी ही बार यहां तक आया एक किलोमीटर ही तो है और बाइक से, ऑटो से दो मिनट भी नहीं लगते। काश कोई अपना ही दिख जाए कोई पहचान ले।
यात्री के साथ यात्रा करने लगती हैं यादें जो घर परिवार और दोस्तों से जुड़ी हैं, कबसे नहीं मिला सबसे। कितनी ही बार चौराहे की चाय पीने दोस्तों के साथ आया और घर की चाय छोड़ दी। आज वही चाय का कप हाथ में है पर वो मज़ा नहीं है पता नहीं क्यों माँ के हाथ की बनी अदरक वाली चाय पीने का मन है। सामने पोहा है पर पोहा तो घर का बना खाने का मन है। मन का क्या है वह तो कहीं भी दौड़ सकता है।

दूसरे दिन की शुरुआत हो चुकी है शहर नींद के आगोश में है इतने वक़्त तक तो घर पर कोई जागता नहीं पर कई बार जब कहीं से बस या ट्रैन से लौट कर आता है बेटा तो 60 के हो चले मां बाप करते रहते हैं इंतेज़ार जो 09 बजे ही सो जाते हैं घर पर। बहुत सुकून होता है उन्हें बेटे के आने पर। ऐसे मौसम में माँ के हाथ के बने मैथी के परांठे उनकी बात ही अलग होती है। वह तुरंत आ जाती है और थाली लगा देती है मानो इसलिए ही जगी हो और फिर निश्चिन्त हो सोने चली जाती है।

इतने में आ जाती आवाज़ "चलो भाई अपनी अपनी सीट पर चलो टाइम हो गया"। शरीर यहीं रहा और मन? मन तो घर पर ही रह गया। अटक गया उस कमरे में जिसमें सो रही है ढाई साल की प्यारी बेटी जिसे अपनी बांह में चमीटे है लेटी है उनींदी उसकी माँ और डबल बेड दूसरे किनारे पर जहां वह सोता है वहां अब रखा होता है एक ढोलकनुमा भारी लोड और तकिया ताकि बिटिया महफ़ूज़ रहे करवट लेते वक्त भी। बेटी की माँ भी इंतेज़ार करती रहती है इनके आने का।

बस का हॉर्न मन को बुलाता है चल भाई वक़्त हो गया है बस निकलने वाली है, मन चला आता है बेमन से। अब सीट पर है शरीर और वह वहीं अटक गया घर में, नींद उड़ गई है। कब मोबाइल देखते-देखते आधे घंटे के लिए आंख लगती ही है कि कंडक्टर फिर आवाज़ लगाता है "चलो भाई लालघाटी, लालघाटी वाले आ जाओ। हर किसी को जल्दी है अब बस से उतरने की पर यह यात्री सबसे आखिर में उतरता है उनींदा बेमन सा।
#बेचैनमनकीयात्र

©Nagendra Chaturvedi #Journey 
#Family 
#Mood 

#stairs
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Nagendra Chaturvedi

कर  दिया तूने जो मुकम्मल वक़्त मिलने का, मैं उसे नहीं मानता।
तेरे-मेरे मिलने  का वक़्त तो मुझे बेवक़्त आने वाली हिचकियाँ तय करती हैं

©Nagendra Chaturvedi #BeautifulMemory 
#Lovemissing
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Nagendra Chaturvedi

Power and Politics उसने बोला- बोल भारत माता की जय, बोल अगर इस देश से प्यार करता है तो ज़ोर से जयकारा लगा।

इसने आंखें बंद की दोनों हाथों की मुट्ठी भींची और ज़ोर से नारा दिया- मादरे वतन हिंदुस्तान ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद।

और जाते-जाते कह गया, भाई अगर समझ जाओगे तो किस्सा यूँ ही खत्म हो जाएगा और सियासतदारों को मुश्किल होगी

©Nagendra Chaturvedi #brotherhood 

#Politics 
#India 
#UNITY 
#hindustan 
#hindumuslim
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Nagendra Chaturvedi

#Oldpeople 
#Oldpeople 
#Family 
#Age 
#Love 
 
#SADFLUTE
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Nagendra Chaturvedi

अनुभव से उपजी पंक्तियाँ:
खिड़की पे रखी खुली किताब के पन्नों सा है आज का आदमी;
कब किस ओर पलट जाए ये तो वो खुद जाने या उसका खुदा.

©Nagendra Chaturvedi #Life_experience 
#lessonoflife 
#humanNature
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Nagendra Chaturvedi

#beti #Betiyan #Pyar #papakipari
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Nagendra Chaturvedi

अजीब जातिय व्यवस्था है जिनको दूर से पानी पिलाने के बाद बर्तन बाहर ही एक बार धोकर अंदर फिर से धोया जाता है या बर्तन अलग ही होता है। जिनके साथ आप बराबरी से उठ बैठ नहीं सकते। उनकी महिलाओं के साथ हैवानियत/दरिंदगी करने में और हत्या कर देने में आपकी वर्ण व्यवस्था और उच्च वर्ण कहाँ चला जाता है?

और इतना होने के बाद भी कुछ जाति और समाज के नरपिशाच इनके समर्थन में आ जाते हैं, रैली निकालते हैं, ज्ञापन देते हैं। अरे तुम्हें तो ऐसी संतति की वंश बेल ही खत्म होने देना चाहिए ताकि ऐसे कलंक मिट जाएं। अपनी गाड़ियों पर अपनी जाति गर्व से लिखवाने वाले तुम किस मुंह से किसी को धुब्बड़, चमड़ा, चमर्रा, मेहतर कह लेते हो? जब जन्म इंसान/मानव का लिया है तो पहले तो तुम्हें वही बनना चाहिए, कब तक यह जातिय दम्भ अपने कंधों पर ढोते रहोगे और यही अपने बच्चों को संस्कार में दोगे।

जानते हो तुम जिन भगत सिंह और आज़ाद का अनुशरण करते हो उनकी जाति देख कर गर्वित होते हो। वह भगत सिंह जब जेल में थे तब उन्होंने अपना मल/मैला साफ करने वाले बोधा को बेबे (माँ) कहते थे और बढ़े गर्व से सबको बताते की मेरा मल बचपन में मेरी माँ ने साफ किया है और उसके बाद बोधा ने तो मैं उसे माँ क्यों ना कहूँ मुझे तो बोधा में अपनी बेबे दिखती है और वह बोधा को गले लगा लेते। बोधा से उनकी एक ही ज़िद थी कि वह अपने हाथ से बना खाना भगत को खिलाये, बोधा यह सुन शर्मिंदा हो जाता और कहता ओ, भगता ज़िद ना कर कहाँ मैं और कहाँ तू।
जब भगत सिंह की फांसी की सजा तय हो गयी तो उन्होंने बोला, बेबे अब तो मैं जाने वाला हूँ, मेरी बात नहीं मानेगा।  अंततः ज़िद के पक्के भगत सिंह को बोधा ने अपने हाथ से बना खाना खिलाया और फूट-फूट कर रोने लगा और भगत को गले से लगाये रखा और कहा कि धन्य है तुझे अपने कोख से जन्म देने वाली माँ।
अब सोचिये की आप ने भगत सिंह के जीवन से क्या लिया सिर्फ उनकी फोटो और इंक़लाब का नारा मुंह से कहने भर को?

याद रखना यही अंतर एक दिन तुम्हें और तुम्हारे परिवार को खा जाएगा देखना। अगर तुम्हारे कर्मों का हिसाब मांगा जाएगा तो क्या गर्व से यह बताओगे की, नहीं हम शांत रहे क्यों कि पीड़िता/पीड़ित दलित थी/था। हमने जात तो देखी पर इंसानियत को किनारे रख दिया। फिर दूसरी समस्या यह भी है कि तुम्हें उन्हें हिन्दू भी बने रहने देना है। अरे, कोई क्यों ढोएगा ऐसा धर्म जिसमें उन्हें सम्मान नहीं है। त्याग ही देना चाहिए ऐसा धर्म और त्यागा जाएगा देखते रहो।
(जिन्हें बुरा लगे लगता रहे, जातीय दम्भ से भरे, अपराधियों के समर्थन और जाति के हिसाब से बोलने वालों के लिए लिखा बाकी लोग अन्यथा ना लें।

©Nagendra Chaturvedi #Stoprape 
#JusticForManishaValmiki 
#HathrasRapeCase 
#hathrasgangrape
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Nagendra Chaturvedi

असल आज़ादी

रोज़ की तरह सेठ ने आज भी दुकान खोली और राजू तय समय पर आ गया। पर आज वो सेठ को कुछ बदला-बदला सा लग रहा था। बाल सलीके से बनाये हुए थे, उजली सफेद कमीज़ के साथ चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान थी और साथ था एक थैला जो उसने राशन के बोरे पर बड़े अदब से रखा था।

सेठ बोला- क्या भर लाया रे तू इस थैले में, राजू?

राजू ने बड़े फ़ख्र से जवाब दिया- सेठ जी, किताबें हैं किताबें, बस्ती वाली बहिन जी ने दी हैं। अब से रोज़ पढ़ कर ही यहाँ आया करूँगा।

अब दोनों सपने देख रहे थे। सेठ को दिख रहा था छः सौ रुपये महीने में हाथ से निकलता हुआ एक मजदूर और राजू को दिख रहा था पास का सरकारी स्कूल- वो जिसकी छत पर हवा में लहराता है रोज़ आज़ाद तिरंगा और उस छत के नीचे कमरों में पढ़ते हमउम्र बच्चे जो उसके सहपाठी होंगे।
©नगेन्द्र #IndependenceDay2020
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