#रत्नाकर कालोनी
पेज-3
इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी के फ्लेट तक पहुंचे जहाँ से "णमो अरिहंताणं,
णमो सिद्धाणं,
णमो आयरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं।" मंत्रों की मधुर धुन मन को मोहे लेती थी..यूँ तो कथाकार प्रत्यक्ष सानिध्य से अछूता रहा किन्तु यत्र तत्र किवदंतियों एवं परोक्ष दर्शन में भी राखी जी का व्यक्तित्व "सत्यहंस" की तरह विशिष्ट समझ आया..कथाकार स्वयं को उत्साहित और गौरवान्वित अनुभव कर आगे बढ़ा कुछ दूर चलते ही अचानक कथाकार स्तब्ध रह गया शायद कोई बंशी पर कोई राग छेड़ रहा था कथाकार उस #प्रेरक