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पेज-3 ------------ इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी क

पेज-3
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इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी के फ्लेट तक पहुंचे जहाँ से 
"णमो अरिहंताणं,णमो सिद्धाणं,णमो आयरियाणं,णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं।" मंत्रों की मधुर धुन मन को मोहे लेती थी..यूँ तो 
कथाकार प्रत्यक्ष सानिध्य से अछूता रहा किन्तु यत्र तत्र किवदंतियों एवं 
परोक्ष दर्शन में भी राखी जी का व्यक्तित्व "सत्यहंस" की तरह विशिष्ट समझ 
आया..कथाकार स्वयं को उत्साहित और गौरवान्वित अनुभव कर आगे बढ़ा 
कुछ दूर चलते ही अचानक कथाकार स्तब्ध रह गया शायद कोई बंशी पर 
कोई राग छेड़ रहा था कथाकार उस धुन की दिशा में बढ़ते बढ़ते आयशा के 
घर तक जा पहुंचा जहाँ आयशा हाथ में मुरली लिये श्यामसुंदर के सम्मुख 
अभ्यास करती नज़र आ रहीं थीं..आयशा, कम उम्र में असाध्य को साधने 
की जद्दोजहद में अपने हौसलों के दम पर कुछ कर दिखाने की प्रबल इच्छा 
से नित प्रति अपने कृष्ण कन्हैया के सामने... लगन को नमन करता हुआ 
कथाकार आगे बढ़ा कुछ कदम पर कथाकार के लाड़ले भैया अमित अपने 
आँगन में अख़बार का लुफ़्त लेते दिखे..देवेश जी अपने आपको फिट रखने 
के लिये कसरत करते हुये दीख पड़ते हैं, कथाकार बारी बारी से अपनों के
 घरों से गुजर रहा था कहीं कोई पौधों में पानी डालते दिखा कहीं कोई आँगन
 बुहारते, कहीं किसी घर में मंत्रोच्चार कहीं बच्चों का अल्हड़पन हंसी ठिठोली..
 कहीं कोई अपने वृत्तिकस्थल तक पहुंचने की तैयारी में जुटा तो कहीं से 
अल्पाहार की भीनी भीनी सुगंध से कथाकार की मन आनंद और रसना जल 
से भर आई...कथाकार आगे बढ़ा हसन साहब अपने फ्लेट के झरोखे से कुछ
 लिखते हुये से दीख रहे थे..
अब आगे-3

©R. Kumar #रत्नाकर कालोनी
पेज-3
 इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी के फ्लेट तक पहुंचे जहाँ से "णमो अरिहंताणं,
णमो सिद्धाणं,
णमो आयरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं।" मंत्रों की मधुर धुन मन को मोहे लेती थी..यूँ तो कथाकार प्रत्यक्ष सानिध्य से अछूता रहा किन्तु यत्र तत्र किवदंतियों एवं परोक्ष दर्शन में भी राखी जी का व्यक्तित्व "सत्यहंस" की तरह विशिष्ट समझ आया..कथाकार स्वयं को उत्साहित और गौरवान्वित अनुभव कर आगे बढ़ा कुछ दूर चलते ही अचानक कथाकार स्तब्ध रह गया शायद कोई बंशी पर कोई राग छेड़ रहा था कथाकार उस
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इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी के फ्लेट तक पहुंचे जहाँ से 
"णमो अरिहंताणं,णमो सिद्धाणं,णमो आयरियाणं,णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं।" मंत्रों की मधुर धुन मन को मोहे लेती थी..यूँ तो 
कथाकार प्रत्यक्ष सानिध्य से अछूता रहा किन्तु यत्र तत्र किवदंतियों एवं 
परोक्ष दर्शन में भी राखी जी का व्यक्तित्व "सत्यहंस" की तरह विशिष्ट समझ 
आया..कथाकार स्वयं को उत्साहित और गौरवान्वित अनुभव कर आगे बढ़ा 
कुछ दूर चलते ही अचानक कथाकार स्तब्ध रह गया शायद कोई बंशी पर 
कोई राग छेड़ रहा था कथाकार उस धुन की दिशा में बढ़ते बढ़ते आयशा के 
घर तक जा पहुंचा जहाँ आयशा हाथ में मुरली लिये श्यामसुंदर के सम्मुख 
अभ्यास करती नज़र आ रहीं थीं..आयशा, कम उम्र में असाध्य को साधने 
की जद्दोजहद में अपने हौसलों के दम पर कुछ कर दिखाने की प्रबल इच्छा 
से नित प्रति अपने कृष्ण कन्हैया के सामने... लगन को नमन करता हुआ 
कथाकार आगे बढ़ा कुछ कदम पर कथाकार के लाड़ले भैया अमित अपने 
आँगन में अख़बार का लुफ़्त लेते दिखे..देवेश जी अपने आपको फिट रखने 
के लिये कसरत करते हुये दीख पड़ते हैं, कथाकार बारी बारी से अपनों के
 घरों से गुजर रहा था कहीं कोई पौधों में पानी डालते दिखा कहीं कोई आँगन
 बुहारते, कहीं किसी घर में मंत्रोच्चार कहीं बच्चों का अल्हड़पन हंसी ठिठोली..
 कहीं कोई अपने वृत्तिकस्थल तक पहुंचने की तैयारी में जुटा तो कहीं से 
अल्पाहार की भीनी भीनी सुगंध से कथाकार की मन आनंद और रसना जल 
से भर आई...कथाकार आगे बढ़ा हसन साहब अपने फ्लेट के झरोखे से कुछ
 लिखते हुये से दीख रहे थे..
अब आगे-3

©R. Kumar #रत्नाकर कालोनी
पेज-3
 इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी के फ्लेट तक पहुंचे जहाँ से "णमो अरिहंताणं,
णमो सिद्धाणं,
णमो आयरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं।" मंत्रों की मधुर धुन मन को मोहे लेती थी..यूँ तो कथाकार प्रत्यक्ष सानिध्य से अछूता रहा किन्तु यत्र तत्र किवदंतियों एवं परोक्ष दर्शन में भी राखी जी का व्यक्तित्व "सत्यहंस" की तरह विशिष्ट समझ आया..कथाकार स्वयं को उत्साहित और गौरवान्वित अनुभव कर आगे बढ़ा कुछ दूर चलते ही अचानक कथाकार स्तब्ध रह गया शायद कोई बंशी पर कोई राग छेड़ रहा था कथाकार उस

#रत्नाकर कालोनी पेज-3 इसी बीच कदम बढ़ते हुये राखी जी के फ्लेट तक पहुंचे जहाँ से "णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।" मंत्रों की मधुर धुन मन को मोहे लेती थी..यूँ तो कथाकार प्रत्यक्ष सानिध्य से अछूता रहा किन्तु यत्र तत्र किवदंतियों एवं परोक्ष दर्शन में भी राखी जी का व्यक्तित्व "सत्यहंस" की तरह विशिष्ट समझ आया..कथाकार स्वयं को उत्साहित और गौरवान्वित अनुभव कर आगे बढ़ा कुछ दूर चलते ही अचानक कथाकार स्तब्ध रह गया शायद कोई बंशी पर कोई राग छेड़ रहा था कथाकार उस #प्रेरक