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rakeshsoni5187
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

Unsplash जब तक है जाँ 
कद्र कहाँ..
जो चले गये 
पूछता है जहाँ..

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #Book
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

White कोई कहाँ से ले आये 
ये मिलता नहीं बाजारों में 
सुकून की तलाश सबको है 
अपने घर परिवारों में

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #सुकून
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

Unsplash जब वक़्त भी वक़्त न दे हमें 
तब समझना मियाद पूरी हो गई 
जहाँ तक मुनासिब था चल गई 
फिर कहानी अधूरी हो गई

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #lovelife
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

Unsplash न जाना पहले कभी दुश्मनी क्या चीज है 
इक मोहब्बत क्या हुई जमाना दुश्मन हो गया

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #leafbook
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

Unsplash आजाद ग़ज़ल 
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जाने कब तिजोरी से माल निकाल लेता है 
ये आदमी बाल की खाल निकाल लेता है 

यहाँ तो कटता नहीं लम्हा उसके बिना 
वो मजे से साल दर साल निकाल लेता है 

हैरान हूँ उससे बहस कर करके मैं वो 
मिरे हर जबाब से सवाल निकाल लेता है

ख़ामोश रहे आना तुम्हारा ये और बात है 
वो माहिर सब हाल चाल निकाल लेता है 

मिरे ताकत-ए-तसव्वुर को नज़र अंदाज न कर ये 
तिरे भीतर के भी ख़याल निकाल लेता है 

मैं मजबूर हूँ उसे सुनकर हँस देने को वो 
बात बात पे जुमले कमाल निकाल लेता है

वो सौदागिरी में बड़ा कमजोर नज़र आया मैं 
दाल मांगता हूँ वो गुलाल निकाल लेता है

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #आजाद ग़ज़ल
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

Unsplash किताबों से कहां अब दोस्ती इंसान रखता है..
नये युग में कहां बेकार के सामान रखता है..!
किसी कोने में घर के बेकदर बिखरी पड़ी होंगी
वो गीता हो या रामायण कहां अब ध्यान रखता है..!

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #leafbook
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

जिन्हें लगता है आँखें नम हैं 
हम चुप हैं ये भी क्या कम है 
जिक्र हुआ तो लम्बा चलेगा 
ये सफ़र कि कितने ग़म हैं

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) @@@@
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

Unsplash लिखते लिखते ही नाम लायेगी ज़नाब 
क़लम है कभी तो काम आयेगी ज़नाब

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #leafbook
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

Unsplash जो मेरी नज़र में महताब हुए हो तुम 
हर इक नज़र में लाजबाब हुए हो तुम 

मेरा सुकून अब परवान चढ़ रहा है 
काँटों के बीच गुलाब हुए हो तुम 

जिस तरह बुलंदियों को छू लिया तुमने 
इस जहाँ के लिये ख़िताब हुए हो तुम 

मेरी नाकामियों का भी जिक्र हो शायद 
जिस वज़ह से कामयाब हुए हो तुम 

पूछा गया कौन हूँ क्या वजूद है मेरा 
उन सारे सवालों का जबाब हुए हो तुम

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #lovelife
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Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात)

Unsplash मेरी तबीयत नासाज़ कर दोगे क्या 
बाकी का हिसाब आज कर दोगे क्या 

बड़ी मिन्नतों से माने हैं सरकार मेरे 
रहने दो उन्हें नाराज कर दोगे क्या 

फिलहाल ठीक है दुनिया आदम से 
यहाँ भी भूतिया राज़ कर दोगे क्या 

फरियाद पहुँचाना है ख़ुदा तक मेरी 
फलक तक आवाज कर दोगे क्या 

अंजाम तलक लाऊंगा इंकलाब को 
तुम महज आगाज कर दोगे क्या

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #Book
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