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शहर ना मंजिल थी ना कोई ठिकाना था, ना कोई कश्ती ना

शहर ना मंजिल थी ना कोई ठिकाना था,
ना कोई कश्ती ना ही  कोई किनारा था ।हम तो थे बस एक राही वहां के,
 राहों से ही बस एक याराना था।
 मिले बिछडे़ कुछ जरुर मगर रिश्ता भी कुछ आखिर अन्जाना था ।
उस भीड़ में भी रह गये आज भी हम अकेले इस कदर आखि़र वो "शहर" ही कुछ विराना था। Hum to tere sheher me aaye hai musafir ki tarah
शहर ना मंजिल थी ना कोई ठिकाना था,
ना कोई कश्ती ना ही  कोई किनारा था ।हम तो थे बस एक राही वहां के,
 राहों से ही बस एक याराना था।
 मिले बिछडे़ कुछ जरुर मगर रिश्ता भी कुछ आखिर अन्जाना था ।
उस भीड़ में भी रह गये आज भी हम अकेले इस कदर आखि़र वो "शहर" ही कुछ विराना था। Hum to tere sheher me aaye hai musafir ki tarah

Hum to tere sheher me aaye hai musafir ki tarah