रातें किसी की याद में कटती है दिन भी दफ्तर ही खा जाता है कुछ देर ही गहरी नींद तो हो फिर शुरू ये दिन हो जाता है मन सोच विचार में लगा ही रहता कुछ ना कुछ हां भी हो जाता है एक ही पड़ाव बस पड़ता स्वप्न का फिर शुरू ये दिन हो जाता है गांव समाज सभी मित्र है बिछड़े जिन्हे सोच के ही मन भर जाता है बचपना बीत गई तो बड़े हो गए है ये मानव क्षण भर में ही मर जाता है कुछ ख्वाब सहेजे कुछ बिछड़ गए एक लक्ष्य को ऐसे कोई पा जाता है एक अरसे के बाद सोचा मुस्कुरा लूं ये मौत का भी डर खा जाता है रातें किसी की याद में कटती है दिन भी दफ्तर ही खा जाता है कुछ देर ही गहरी नींद तो हो फिर शुरू ये दिन हो जाता है ©कुमार दीपेन्द्र #MomentOfTime #Life #SAD #follow