मैं ,तुम और हमारी पहली बरसात भींगे-भींगे से एहसासो के साथ बून्द-दर बून्द बहकाने लगे थे सावन की पहली फुहार थी जज्बातों के वज्रपात हो रहे थे कैसे ये बादल तुम्हे छत पर देख कर ही तुम्हारे खुले केशो को भींगाने के लिए बावरा हो चला था उसे नहीं पता था तुम मेरी थी जिसे सिर्फ मैं ही भींगा सकता था खैर जो भी था पर उस चांदनी रात की बरसात में तुम्हारी बिंदी चाँद सी चमक रही थी और तुम्हारे कमर से लिपटे कमरबंद ने मुझे जख्मी ही कर दिया था–अभिषेक राजहंस हमारी पहली बरसात