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मैं अगर अर्ज करू लफ्जो में, मेरे आसार मेरे हिज्र क

मैं अगर अर्ज करू लफ्जो में,
मेरे आसार मेरे हिज्र का पयाम बने
इसलिए कागजों में लिखता हू
कि तुझे दर्द भी हो मेरा भी मकाम बने
ईद का चांद भी अब तेरे रुख से वाकिफ हैं
कि तेरे सुबह रहे और मेरी शाम बने 
दिन-ए-सूरज भी मेरी हिजरतो से ढलता है
कि मैं ढलू कि कुछ हिजरत-ए-कलाम बने
चले आए हो मुंतजिर होने घर में मेरे
मेरा 'संघर्ष' मेरे नाम की पहचान बने

©Shubham yadav
  #me_my_thoughts_and_you