रावण, एक विद्वान ब्राह्मण,एक कुशल शासक एवं एक मर्यादित प्रतिशोधी ,हम अक्सर इस तरह के तर्कों के साथ रावण दहन के विरोध में अपना पक्ष रखते है।। लेकिन बदले की आग में अपने पौरुष का दुरुपयोग करना , एक भाई का शूर्पणखा की अनुचित हठ का पक्षधर होना ,एक आदर्श चरित्रवान स्त्री को अपने पतिधर्म से विमुख होने का प्रस्ताव रखना, ये सब उदाहरण है कि ज्ञान अगर विवेकहीन और अहंकारी हो तो वह प्रलयकारी होता है, स्वंय के लिए भी , समाज के लिए भी , परिवार की प्रतिष्ठा के लिये भी , और आने वाली पीढ़ियों के लिए लिखे जाने वाले इतिहास के लिए भी ।। हम सबकी जिंदगी में ऐसे कुछ पल आते है जब हमे चुनाव करना होता है, सही एवं गलत में , स्वार्थ एवं कर्तव्य में , मर्यादा और स्वछंदता मे, भोग विलास में एवं सभ्यता में , और यहीं पर परिचय होता है हमारा और हमारे विवेक का ।। निर्णय मुश्किल वही होता है जो सत्य से जुड़ा होता है, जहाँ अहम का त्याग भी शामिल होता है, जहाँ हमे स्मरण होता है कि हमारे कृत्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तरीके से किसी को प्रभावित कर रहे है,गलत मार्ग की यात्रा बहुत लुभावनी होती है ,एवं क्रोध स्वार्थ विलासिता उस रास्ते के लिए दिशाओं का काम करती है।। प्रलोभित होना स्वाभाविक होता है स्वीकार्य है, किन्तु ज्ञान और गुण की परख में आप तब विजयी होते है , जब आप उस रेखा को पार ना करे जो अंततः आपका चारित्रिक मानसिक एवं अंततः सर्वस्व हरण कर लेगी, जैसे रावण का हुआ था।। #raavan