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कब दर्शन किए थे नासमझ अनिल ने किसी विद्यामंदिर का

कब दर्शन किए थे नासमझ अनिल ने
किसी विद्यामंदिर का नजदीक से यार
बस जब से देखा है यह हसीं चेहरा और
खींचने लगा "मैं" टेढ़ी-मेढ़ी कुछ लकीरें..


हसीं आँखों के वों खूबसूरत ख्वाब
ठुकराकर जो दरकिनार किया मुझे
मिलना मुझसे तुम अंतिम समय में..

मरा होगा जिस्म जब तड़पकर मेरा
परन्तु यें रूह इंतजार करेंगी तुम्हारा
यार!तुम होना मेरे जनाजे में शामिल
और बताना मुझको दफनाने से पूर्व
इस क़दर मोहब्बत को छोड़ना अधुरा
कहाँ तक जायज़ फैसला था तुम्हारा..

समय पर आ जाना यार इंतजारे-हद की
कही मिट्टी पर मिट्टी ना डाल दें दुनिया?

©Anil Ray
  #intejar