हाँ , प्रमाण है मेरी नासमझी का , मैं स्वयं को समझदार नहीं समझती, मैं उन जालसाजिशों , उन विवादों , से स्वयं को उझाने से बचती हूँ , तर्क पर तर्क देना , द्वन्द या प्रतिस्पर्धा जैसे शब्द मेरी वैचारिक परिवेश का हिस्सा नहीं बन पाते , मैं स्वयं को चतुर-चालक, अधिक वाचाल या चंचल नहीं समझती, मुझमे समाज को समाजिक नजरिये से परखने की शक्ति क्षीण है , हाँ मैं तनिक भावुक हूँ , मैं समाज के बनाये कायदे कानून पर खरी नहीं उतरती , या ये समाज उन्ही रूढ़िवादी विचार धारा में स्वयं को बंधे रखना चाहता है , मेरा ,समाज को देखने का दृष्टिकोण थोड़ा सा अलग है, मुझे भीड़ से ज्यादा एकांत पसंद है, हाँ शायद मैं अपना अधिकतर समय बड़े-बूढ़ो के बजाय बच्चों को देती हूँ , इस प्रकार मैं लोगो की नजरों में नासमझ ही कहलाती हूँ | SONAMKURIL #समझदार #प्रमाण