शेर है या मन्त्र पढ़ रहे हो क्या मुर्दे में जान फूंक रहे हो। कहीं कठपुतली कहीं चलचित्र दिखा रहे हो, इस मेले में प्रभु लीला करा रहे हो। प्रकाश तुम्हारी ओर या तुम प्रकाश की ओर, कह़ी परायी आग में तो कहीं रोटियाँ सिकवा रहे हो।। ये आखरी बाज़ी है और जुआ नहीं है, ए सूरज! अन्धेरे ने पूछा फिर निकल रहे हो। उसने पत्ते नहीं बिखेरे, तूने भी शो नहीं मांगी, इसमें हार जीत नहीं होती, फिर ताश फेंट रहे हो। ये ज़िन्दगी है, जुआ नहीं होगा तो कोई तो खेल होगा, जो ताश फेंट रहा है उस पर भरोसा कर रहे हो। एक तू मन्दिर क्यों जाता है दो तू मस्जिद में क्या कर रहा है, तीन चर्च में चर्चा किसका है, 123 की sequence पर फैल रहे हो। वहां साकी*ए-trail मयखाने में बैठकर धारा 144 लगा रहे हो। *साकी - the supreme power