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राज !राज! एक आवाज कानो तक पहुची आवाज जानी पहचानी स

राज !राज! एक आवाज कानो तक पहुची
आवाज जानी पहचानी सी थी 
अचानक से मैं मुड़ा था
आखिर इस सुन सान सड़क पर
कोई मेरे निक नेम से, कौन हो सकता है
जो भी है मुझे जनता तो है
लेकिन सोचने का वक्त कहा था
साय से एक ऑटो बगल से गुजरी
दर असल आवाज वही से थी
मैं कुछ जवाब दे पाता
या फिर पहचान पाता गाड़ी आगे निकल गयी थी
मैं गाड़ी निहार ही रहा था
कुछ दूर आगे जाकर रुक गयी 
मैं भी तेज कदमो से आगे बढ़ा था
किनारे की सीट पर बैठी थी
मोटी फ्रेम के चश्मे से झांकती
नजरों का पहचानने में देर नही लगी
यहां! तुम सड़क पर 
हा अब इसी शहर में हु हूँ घर बना लिया है
फिर ढेर सारी बात, वो उसने जो मेरे लिए
बचा रखे थे इतने दिनों से 
अंत मे ऑटो बाले ने कहा अब चलिये
कुछ आगे के लिए छोड़िए
thanks ऑटो वाले भाई
आखिरी शब्द सॉरी राज
लगा प्यार मरता नही है
कुछ उसकी तरह मेरा मतलब
ऑटो की किनारे वाली सीट के सवारी के तरह
उसके हर शब्द को सोचता सुनता समझता
फिर सुन सान सड़क चल पड़ा था

©ranjit Kumar rathour
  आज मिली थी
#वही और कौन
#जो तेरी दीवानी
#जिसका तू दीवाना था
#सॉरी राज!

आज मिली थी #वही और कौन #जो तेरी दीवानी #जिसका तू दीवाना था #सॉरी राज! #कविता

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