आदमी आदमी को मरते देख रहा है ०००००००००००००००००००००० आदमी आदमी को मरते देख रहा है, सड़क पर घसीटते और कटते देख रहा है। हत्याएं अनगिनत हो रही है बेटियों कि, मूर्दा बैग में कहीं फ्रिज में सड़ते देख रहा है। हालात भयावह है गुजरते वक्त का, इंसान नहीं मानो कुत्ता को सड़ते देख रहा है। आदमी से ज्यादा आज जानवर समझदार है, जानवर भी जानवर को समझते देख रहा है। उंगली उठती है हमारी हरदम गैरों पर, सच पर सभी को सब मुकरते देख रहा है। दुर्घटना हो, मारपीट हो या कोई बिमार हो, कई बार सड़क पर तड़फते और मरते देख रहा है। बेफजूल का वक्त हम गुज़ार देते हैं मस्ती में, बेमतलब रफ्तार में गाड़ी लोग दौड़ते देख रहा है। दुर्घटनाएं आती हैं चली जाती है, आंसू पी कर परिवार को लोग तड़फते देख रहा है। उठो और जागो अब तुम भी निंद से, धन दौलत वालों को भी श्मशान में जलते देख रहा है। आदमी आदमी को मरते देख रहा है।। """"""""""""""""""""""""""""""""""" प्रमोद मालाकार की कलम से """"""""""""""""""""""""""""" ©pramod malakar #आदमी आदमी को मरते देख रहा है