ताउम्र सफर में ही गुजरेगी , या किसी मोड़ पे बसेरा भी होगा । अंधेरों की अब आदत डाल लूं , या कल फिर सवेरा भी होगा । सुकूं खिलेगा कभी इस दिल में , या बहारों में बंजर गुलिस्तां इक मेरा होगा। बांध लूं आंखो में इस समंदर को , या किसी रोज बहने का हक मेरा भी होगा । #अल्फ़ाज़_दिल