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उस युवा को... जिसके कन्धों पर देश का भविष्य टि



उस युवा को... 

जिसके कन्धों पर देश का भविष्य टिका कहा जाता है...
जिसको केंद्र में रखकर देश की लगभग सारी योजनाएं बनती हैं...
जो हर उस योजना में, चुनाव के हर वादे में कुछ नई उम्मीदें खोज लेता है...
जो गॉंव से दूर शहर के किराए के एक कमरे में; ssc और बैंक की नौकरियों में बदलते भविष्य को देखता है...
जो एक थड़ी पर दस रुपये की चाय पीते हुए; कलेक्टर बन कर सिस्टम को बदलने के सपने संजो लेता है...
जो हर सरकारी भर्ती में ट्रेनों और बसों की छतों पर सफर करता है... 

जो बात-बात पर जान की परवाह किये बिना; धरने पर बैठ जाता है...
जो जाने कितनी बार यूँ ही बिना किसी सुर्खी में आये सड़कों पर जाने कब मर जाता है...
जो एक नौकरी की उम्मीद में उम्र के जाने कितने पड़ाव खो देता है...
जो वक़्त पड़ने पर कॉलेज से छुट्टी लेकर गांव में बाप के साथ गेँहू भी काटता है... 

जो कई डिग्रीयां लेकर भी नौकरियों के लिए अयोग्य होने की दुहाई पाता है...
जो आरक्षण के नाम पर जाने कब सेलेक्ट और रिजेक्ट हो जाता है...
थोड़ा सा ज़्यादा पढ़ ले तो; देश से ज़्यादा विदेश में अच्छे अवसर पाता है...
जो अंग्रेजी की चार लाइन ना बोल पाने पर जाने कितनी बार पछाड़ खा जाता है... 

अचानक किसी विदेशी संस्था में करोड़ों का पैकेज पाने पर जो अखबार के पहले पन्ने पर आ जाता है...
देश में अनजान योग्यता के बलबूते विदेश में परचम लहरा जो आंकड़ों का प्रमुख आधार बन जाता है...
हर परिणाम के घोषित होने पर जो अचानक ही फाँसी पर लटक जाता है...
हज़ारों रिसते घावों के बाद भी जो विवेकानंद की एक पंक्ति से प्रेरणा पा; फिर एक ध्येय को जुट जाता है... 

उस युवा को... 



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©पूर्वार्थ
  #युवा