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मोर की मनसा आसमान से गिरा जो हीरा मिट्टी की मिट गय

मोर की मनसा
आसमान से गिरा जो हीरा
मिट्टी की मिट गयी सब पीड़ा
उड़ते सोन्हे खुशबु का सवेरा
रग-रग में जैसे डाले रहा डेरा
चिड़ियों की वो डाली वो बसेरा
हिलते-डुलते पत्तों का हिलोरा
सुनहरे पंखों की वो नीली छाया
बूंदों ने मन उसके ठाठ जमाया
अपने अंगड़ाई में नभ को समाये
झट उठ घुम घुमकर आगे आये
गाढ़े काले रंग में गुम झूमे नाचे
बादलों से करे बयाँ हाल वो ऐसे
मायूस सा सोया रहा आस में तेरे
खोया सा रहता पर अपने समेटे
बिन तेरे तड़प रहा बिन थिरके
पग भी अब थक गए रुके- रुके
क्या भाता नहीं तुझे मेरा नृत्य ये
नाराज़ हूँ तुझसे मैं भी कब से
एक तो आया है इतनी देर से
और ऐसे बरसा भी ना वर्षों से।

©Deepali Singh मोर की मनसा
मोर की मनसा
आसमान से गिरा जो हीरा
मिट्टी की मिट गयी सब पीड़ा
उड़ते सोन्हे खुशबु का सवेरा
रग-रग में जैसे डाले रहा डेरा
चिड़ियों की वो डाली वो बसेरा
हिलते-डुलते पत्तों का हिलोरा
सुनहरे पंखों की वो नीली छाया
बूंदों ने मन उसके ठाठ जमाया
अपने अंगड़ाई में नभ को समाये
झट उठ घुम घुमकर आगे आये
गाढ़े काले रंग में गुम झूमे नाचे
बादलों से करे बयाँ हाल वो ऐसे
मायूस सा सोया रहा आस में तेरे
खोया सा रहता पर अपने समेटे
बिन तेरे तड़प रहा बिन थिरके
पग भी अब थक गए रुके- रुके
क्या भाता नहीं तुझे मेरा नृत्य ये
नाराज़ हूँ तुझसे मैं भी कब से
एक तो आया है इतनी देर से
और ऐसे बरसा भी ना वर्षों से।

©Deepali Singh मोर की मनसा
deepalisingh8800

Deepali Singh

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