क्या कुछ हम में कमी है अभी इन चिराग़ों में रौशनी है अभी छोड़ो मुझ को लुटना खसोटना चंद लम्हों की जिन्दगी है अभी रात के बाद सबेरा आयेगा नया आहट ऐसी ही आ रही है अभी बात तो पते की ही कहीं उस ने क्या कोई गुंजाइश बची है अभी हिम्मत जो बची है कैसे छोड़ दे आस दिल में ऐसी लगी है अभी श्याम कौशिक ©श्याम कौशिक #snowpark ग़ज़ल