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मै चीरना चाहती हू ख़ुद के अंदर की वो सारी आवाजें

मै चीरना चाहती हू ख़ुद के
अंदर की वो सारी आवाजें

जो युगों युगों से खामोश
रखी है मुझे

मै हृदय की आग को
दिसम्बर की बर्फीली
लहर मे समेटना चाहती हू 

जी वर्षो से सीने मे 
धधक रही है

पर रिवाजों का कैद
बहुत गहरा है

और संस्कारों का पिंजर
बेड़ियों से लबालब

धीर! मेरे रूह की
अपर्याप्तता बताती है

©चाँदनी
  #धीर

#धीर

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