"मोहब्बत" सिर्फ़ रूह की "ख़्वाहिश" हैं यही बस इस "दिल" की "फर्माइश" हैं जिस्मों के खेल को नाम ना दे "इश्क़" का यह हमारी घृणित सोच की "नुमाइश" हैं "इश्क़" इबादत है,उस 'ख़ुदा' की "कृष्णा" इबादत में यूँ तू कभी भी मिलावट ना कर छू कर तन मोहब्बत में, "रूह" को भी छू तू हवस से "इश्क़" का दामन मैला ना कर तू क्षणिक "सुख" के लिए ना कर काम बुरा तू खुद को "सच्चिदानंद" से दूर ना कर तू देह संबन्ध:_ "मोहब्बत" सिर्फ़ रूह की "ख़्वाहिश" हैं यही बस इस "दिल" की "फर्माइश" हैं जिस्मों के खेल को नाम ना दे "इश्क़" का यह हमारी घृणित सोच की "नुमाइश" हैं