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क्यों प्रीत करे उस बादल से, जो ना बरसे, बस गरजत

क्यों प्रीत करे उस बादल से, 
जो ना बरसे, 
बस गरजत जाये। 
ना प्यास बुझे, 
बस आस रहे। 
जब जल जाये, 
ये रूह मेरी। 
तो का ही करे, 
जब जल आए। 
बिजली तो खुद ही 
गिरवा देता। 
बरखा पर ना, 
जो करवा पाए।

©The Poetic Megha
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