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पतझड़ का मौसम """"""""""""""""""" बसंत ऋतु आया, पत

पतझड़ का मौसम
"""""""""""""""""""
बसंत ऋतु आया,
पतझड़ का मौसम लहराया।
तरुवर से पत्ते झाड़ कर,
खूब उत्पात मचाया।
पौधों और पेड़ों से,
मुरझाए पीले पत्ते उतारकर,
अपना एक झलक दिखलाया।
बसंत ऋतु आया,
पतझड़ का मौसम लहराया।
नंग धड़ंग पौधों के चिंतन से,
हताश और भय से धरती,
उपेक्षित खुद को समझाया।
एक पल बसंत मुस्काया,
पहले था ओझल,
अब रूप अपना अकस्मात दिखलाया।
धरती पर अनोखा हरियाली छाई,
मोर पंख लहराने लगी,पक्षी की चहचहाहट,
कोयल की कूक अद्भुत गीत सुनाने लगी।
बाग, बगीचे लहराने लगे,
अधीर हो बसंत को पुकारने लगे।
धरती बोली,
बसंत तूने मुझे हरा वस्त्र पहनाया,
मुझ जैसे सूखे बंजर को तुमने अद्भुत और
अनुठा बनाया।
बसंत रितु आया,
पतझड़ का मौसम लहराया।।
""""""""""""""""""""""""""""""""""
प्रमोद मालाकार की कलम से
13.07.2021...68
****************

©pramod malakar 68

#MorningTea
पतझड़ का मौसम
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बसंत ऋतु आया,
पतझड़ का मौसम लहराया।
तरुवर से पत्ते झाड़ कर,
खूब उत्पात मचाया।
पौधों और पेड़ों से,
मुरझाए पीले पत्ते उतारकर,
अपना एक झलक दिखलाया।
बसंत ऋतु आया,
पतझड़ का मौसम लहराया।
नंग धड़ंग पौधों के चिंतन से,
हताश और भय से धरती,
उपेक्षित खुद को समझाया।
एक पल बसंत मुस्काया,
पहले था ओझल,
अब रूप अपना अकस्मात दिखलाया।
धरती पर अनोखा हरियाली छाई,
मोर पंख लहराने लगी,पक्षी की चहचहाहट,
कोयल की कूक अद्भुत गीत सुनाने लगी।
बाग, बगीचे लहराने लगे,
अधीर हो बसंत को पुकारने लगे।
धरती बोली,
बसंत तूने मुझे हरा वस्त्र पहनाया,
मुझ जैसे सूखे बंजर को तुमने अद्भुत और
अनुठा बनाया।
बसंत रितु आया,
पतझड़ का मौसम लहराया।।
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प्रमोद मालाकार की कलम से
13.07.2021...68
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©pramod malakar 68

#MorningTea