ऐ दोस्त मेरी धीमी गति की यू गिला न कर मेरे लीए तो मेरा गंतव्य. मेरी यात्रा मे ही है क्योंकि यात्री मे ही यात्रा है. और मेरा गंतव्य भी मुझसे अलग नही है मेरे लीए तो खुद मेरी मंजिल यात्रा मे ही है मेरे होने मे ही मेरा सत्य है मेरे होने मे ही मेरी सत्ता है ©Parasram Arora गंतव्य.....