खिल पाया तभी तो खुल पाया वो सूक्ष्म सा मै दिव्या चेतना के आलोक से जब सी लिया मैने जंग खाई हठीली वृतियो का छिद्र बंद कर पाया आँख का बाहरी आवरण औऱ खुल गया जब भीतरी आँख का आलोक वो सूक्ष्म सा मै