*** ग़ज़ल *** *** तसब्बुर *** " हम याद जऱा तुम्हें करेंगे , तेरी बात जऱा खुद से करेंगे , मुख्तलिफ मसले फिर क्या किया जाये , हम खुद में तुम्हें खोजते फिरेंगे , रास आये हयाते-ए-हिज्र फिर वो बात कहां मुलाक़ात कहा , सवालात जो करु फिर वो बात कहां , मिलना हैं की बिछड़ना हैं वो , मुख्तलिफ सवगात हैं , मिल की बिछड़ना ना परे , ऐसे में हमारी गुफ्तगू कहा , सब आईने के दस्तूर पुछते हैं , अभी तुम से मेरा मिलना हुआ कहा , कोई रुख करु तो फिर कोई बात हैं , बुझते जज्बातों के वो दौर कहा , यु खोना भी तूझे खोना है , फिर तुझसे मैं ग़ैर इरादातन फिर मिला कहां , कोई बात आज भी आईने के दस्तूर लिये बैठा हैं , मिलते तो पुछते तुम से कौन शक्ल अख्तियार किए बैठे हो , जो तसब्बुर के ख्यालों से तुम हु-ब-हू कहीं नहीं मिलते ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** तसब्बुर *** " हम याद जऱा तुम्हें करेंगे , तेरी बात जऱा खुद से करेंगे , मुख्तलिफ मसले फिर क्या किया जाये , हम खुद में तुम्हें खोजते फिरेंगे , रास आये हयाते-ए-हिज्र