#OpenPoetry एक अंधेरे को सिया है उजाले में बैठे, तुम चाँद-तारों की बहुत कहते हो, सुनो साहब, मैंने कल ब्रह्माण्ड की सैर की है घर में लेटे.! उजाले तो मिले नहीं मिलेंगे कैसे, अंधेरा जो सिया था तो उजाले बिखेरेंगे कैसे.? उनसे कह दो हम तैयार हुए बैठे है, ये न कहना कि पेट भरके लेटे है, अभी तो पथ के कंकड़ ही हटाये थे बहुत, सुना कि दस्ते पूरे पत्थरों को लिए बैठे है, कल तक जो सोया था उस बीहड़ में देखो, सुना है मेरे गाँव का वो आदमी जागने लगा है, अरे सुनो कभी हमारी याद आये तो कहना, कहीं भूल न जाओ कि हम भी इसी गाँव के बेटे हैं..! #