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लिखने से सुकूँ मिलता हैं, मंजिल से मुसाफिर क्यूँ भ

लिखने से सुकूँ मिलता हैं,
मंजिल से मुसाफिर क्यूँ भटकता हैं।

जिसको ढूँढ़ रहा था सालों से,
उसका घर तो रस्ते में पड़ता हैं।

वो गरीब मजदूर का बच्चा हैं तो,
खिलौने के लिए जिद नहीं करता हैं।

चाँद को तकते सोच रहा हूँ,
ये अंधेरे में भी कैसे चमकता हैं?

©करण बोराणा #kalamkaar #nojota #Chand #KaranBorana
लिखने से सुकूँ मिलता हैं,
मंजिल से मुसाफिर क्यूँ भटकता हैं।

जिसको ढूँढ़ रहा था सालों से,
उसका घर तो रस्ते में पड़ता हैं।

वो गरीब मजदूर का बच्चा हैं तो,
खिलौने के लिए जिद नहीं करता हैं।

चाँद को तकते सोच रहा हूँ,
ये अंधेरे में भी कैसे चमकता हैं?

©करण बोराणा #kalamkaar #nojota #Chand #KaranBorana