व्यथा की गाथा सुनाऊँ किसे कोई सुनता नहीं इसलिए पन्नों पर उतार दिया जब समझता ही नहीं कोई ख़ुद पर गुस्से में निकाल दिया क्यों कहते हैं वो खुश रहा कर बोला मैंने कभी वजह भी दिया कर दिखाऊँ कैसे मैं किसी को क्या हाल है अपने अंदर मेरे उलझनों का टकराता बवंडर और उनके नसीहतों का खोखला आडंबर बर्दास्त नहीँ मुझे अब वो या तु रहम कर और नहीं रहना मुझे यूँ सहम कर नहीं पीना विवादों का घूँट-घूँट ज़हर बहुत कर लिया मैंने सब्र करना है तुझे कुछ सच में अगर एक बार बस देख ले यहाँ आकर। ©Deepali Singh व्यथा की गाथा