गजल एक मायूस से चेहरे मे दम भरने निकले हो तुम क्या हाकिम हो जो तकदीर बदलने निकले हो उसने तन्हा छोड़ दिये तुम्हारे जैसे कितने जिसके खातिर आज तुम घर से मरने निकले हो तुम्हारे जैसा क्या कोई बर्बाद हुआ होगा बसी बसाई ग्रहस्थी छोड़ छत करने निकले हो कारवां को रहजन जब लूट लाटकर ले गए तुम खेमों से बाहर अब क्या करने निकले हो जिस रस्ते पर तुम्हारे अजीजों की चिताएं जल गईं उस रस्ते से आज फिर तुम गुजरने निकले हो तुमने जो खोदे थे मेरे मदफन के खातिर ऐ'आलम' उन गड्ढों को अब क्या सोचकर भरने निकले हो मारूफ आलम घर से मरने निकले हो/गजल