White सुकून कहीं खो गया है यह मेरे शहर को ,न जाने क्या हो गया है। वो बचपन वाला सुकून,कहीं खो गया है। खो गई है आंगन में बचपन की शरारतें। खो गई है देर तक आराम वाली करवटें। खो गई है बारिश में कागज़ वाली नाव। खो गई है धूप में खपरैल वाली छांव। रात में जागता शहर दिन में सो गया है यह मेरे शहर को न जाने क्या हो गया है। कहां है वो स्कूल का लटकता सा थैला। कहां है वो पुरानी किताब कपड़ा मैला। अब आचार की खुशबू नदारद हो गई। अब सबकी अपनी अपनी चादर हो गई। चादर की सादगी, स्वच्छता कह धो गया है। यह मेरे शहर को न जाने क्या हो गया है। ढूंढो जरा कहां गया वह छुट्टी वाला इतवार। कहां है साथ बैठ टीवी देखने वाला परिवार। गुल्ली डंडा,खो - खो और पापा की चिट्ठी। आंगन में तुलसी और बर्तन धोने की मिट्टी। ये कंप्यूटर मोबाइल दूरी मिट्टी में बो गया है। यह मेरे शहर को न जाने क्या हो गया है। वो बचपन वाला सुकून कहीं खो गया है। रानी ©रानी सोनी 'परी' #Life❤