मैं नादान था इस बात से अनजान, उस को क्या कह के बुलाऊँ? है जो मुझे चिढ़ाता बहुत, बात- बात पर गुस्सा भी होता, मेरे रोने पर रोता, मेरे हंसने पर हंसता, फिर भी न पाया अभी तक जान, मैं नादान था इस बात से अनजान, मैं कहता नहीं था, पर फिर भी सब जान लेता था, दूर बैठ कर भी सब कुछ उसको दिखता था, क्या तेरा क्या मेरा लेस नहीं रहा उसे, पैसे का भी मोल नहीं रहा उसे, फिर भी न पाया अभी तक जान मैं नादान था इस बात से अनजान, जिस रिश्ते से अभी तक था अनजान, दोस्ती है उसका नाम अब गया मैं यह जान, ऐसा ये अनमोल है रिश्ता बड़ा निराला है, कैसे कब बन जाए ये रिश्ता, इसमें बड़ा अचंभा है, दोस्त और दोस्ती