हर दफ़ा लोग मेरे पास आए कुछ मंसूबे लेकर हम बैठे ही रह गए अपनी ख्वाहिशें लेकर कुछ ऐसी ही ज़िन्दगी रही है अपनी खुशियां बाट रहे है हम गर्दिशे लेकर बनाया होता हमे भी इस जमाने सा सयाना क्या मिल रहा हमे ऐसी परवरिश लेकर किस ओ एक ही गर्दन घुमाए हम हर शख़्स बैठा है कत्ल की साज़िशें लेकर कितने ढीठ दिल हो तुम क्षत्रियंकेश अभी बैठे हो नेकी की कोशिशें लेकर ©क्षत्रियंकेश मंसूबा!