ये ऋतु चक्र के अनुशासित बदलाव कुदरत के करिश्मे है... हर अँधेरे के गर्भ में उजाला ठाठे मार रहा है बसंत का आगमन होते ही पतझड़ी मौसम भी कहा चुप रहता.... वो भी एकदिन आ धमकता है लू का हर थपेड़ा आने वाली शीतल फुहारो का इंतज़ाम कर जाता है और पहाड़ी झरना नदियों कों अस्तित्व दें जाता है कोहरे की हर परत के पीछे सूरज छुपा रहता है धुंध की अपारदर्शिता एक कवि कों नए छण्द मुहैया करा जाती है जबकि छाया की अप्रतिम फांके वृक्षों कों आँख मिचौनी का खेल सिखाने का काम करती है बादलो से घिरे हुए खलिहान वर्षा से लहलहा उठते है और वो फूल काँटों के बीच रहते हुए भी पूराखिल जाने की हिम्मत कर पाता है ©Parasram Arora ऋतु चक्र.....