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आंखों में समंदर सा मंजर है, सीना भारी है, कंठ पर अ

आंखों में समंदर सा मंजर है,
सीना भारी है, कंठ पर अंकुश है,
और ना खड़े रहने की हालत है,
आंख पे चश्मा भी अब भारी है
दुख की गुंजाइश ही क्या?
अब इससे बुरा और होगा क्या? दंगों के बाद की बात
आंखों में समंदर सा मंजर है,
सीना भारी है, कंठ पर अंकुश है,
और ना खड़े रहने की हालत है,
आंख पे चश्मा भी अब भारी है
दुख की गुंजाइश ही क्या?
अब इससे बुरा और होगा क्या? दंगों के बाद की बात

दंगों के बाद की बात