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"राहुल - श्रेया" ©@deep_sunshine1210 वो सतरंगी चु

"राहुल - श्रेया"

©@deep_sunshine1210 वो सतरंगी चुनरी कहा रखी यार पहले से लेट हूं वो राहुल का बच्चा वक्त से पहले पहुंच गया होगा।( श्रेया चुनरी ढूंढते हुए बडबडा रही है।)
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राहुल श्रेया का बचपन का दोस्त है, आठवीं क्लास तक साथ पढ़ें फिर राहुल के पापा का तबादला शहर में हो गया। दोस्ती का धागा इतना मजबूत कि किसी के खिचने से भी तस्बीह से मोती अलग ना हुए। हर साल की तरह राहुल छुट्टियों में गांव आता है कुछ दिन रहकर अपने गांव की खुशबू को यादों के पिटारे में संजो के वापस शहर चला जाता है।
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श्रेया फुर्ती से गांव के मैदान की ओर कदम बढ़ाए जा रही है। गांव के सारे बच्चों को बचपन मैदानों में ही तो बीतता है।गिरते - संभलते, खेलते हुए चोट के हरे निशान कब पीले पड़ जाते पता ही नहीं चलता था। राहुल और श्रेया वहीं पर मिलने वाले है।मैदान में श्रेया को दूर दराज तक कोई नजर नहीं आता है ।श्रेया चैन की सांस लेती है शुक्र है भगवान का वो पागल आज लेट हो गया वरन् उसे तो एक ओर बहाना मिल जाता मुझे चिडाने का।
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अरे ओ लेट लतीफ इतना भी शुक्र मत मनाना भगवान का राहुल से जीतना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है। ( राहुल पेड़ के पीछे छिपा अपने अंदाज में बोल रहा था।)
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"राहुल - श्रेया"

©@deep_sunshine1210 वो सतरंगी चुनरी कहा रखी यार पहले से लेट हूं वो राहुल का बच्चा वक्त से पहले पहुंच गया होगा।( श्रेया चुनरी ढूंढते हुए बडबडा रही है।)
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राहुल श्रेया का बचपन का दोस्त है, आठवीं क्लास तक साथ पढ़ें फिर राहुल के पापा का तबादला शहर में हो गया। दोस्ती का धागा इतना मजबूत कि किसी के खिचने से भी तस्बीह से मोती अलग ना हुए। हर साल की तरह राहुल छुट्टियों में गांव आता है कुछ दिन रहकर अपने गांव की खुशबू को यादों के पिटारे में संजो के वापस शहर चला जाता है।
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श्रेया फुर्ती से गांव के मैदान की ओर कदम बढ़ाए जा रही है। गांव के सारे बच्चों को बचपन मैदानों में ही तो बीतता है।गिरते - संभलते, खेलते हुए चोट के हरे निशान कब पीले पड़ जाते पता ही नहीं चलता था। राहुल और श्रेया वहीं पर मिलने वाले है।मैदान में श्रेया को दूर दराज तक कोई नजर नहीं आता है ।श्रेया चैन की सांस लेती है शुक्र है भगवान का वो पागल आज लेट हो गया वरन् उसे तो एक ओर बहाना मिल जाता मुझे चिडाने का।
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अरे ओ लेट लतीफ इतना भी शुक्र मत मनाना भगवान का राहुल से जीतना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है। ( राहुल पेड़ के पीछे छिपा अपने अंदाज में बोल रहा था।)
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वो सतरंगी चुनरी कहा रखी यार पहले से लेट हूं वो राहुल का बच्चा वक्त से पहले पहुंच गया होगा।( श्रेया चुनरी ढूंढते हुए बडबडा रही है।) . राहुल श्रेया का बचपन का दोस्त है, आठवीं क्लास तक साथ पढ़ें फिर राहुल के पापा का तबादला शहर में हो गया। दोस्ती का धागा इतना मजबूत कि किसी के खिचने से भी तस्बीह से मोती अलग ना हुए। हर साल की तरह राहुल छुट्टियों में गांव आता है कुछ दिन रहकर अपने गांव की खुशबू को यादों के पिटारे में संजो के वापस शहर चला जाता है। . श्रेया फुर्ती से गांव के मैदान की ओर कदम बढ़ाए जा रही है। गांव के सारे बच्चों को बचपन मैदानों में ही तो बीतता है।गिरते - संभलते, खेलते हुए चोट के हरे निशान कब पीले पड़ जाते पता ही नहीं चलता था। राहुल और श्रेया वहीं पर मिलने वाले है।मैदान में श्रेया को दूर दराज तक कोई नजर नहीं आता है ।श्रेया चैन की सांस लेती है शुक्र है भगवान का वो पागल आज लेट हो गया वरन् उसे तो एक ओर बहाना मिल जाता मुझे चिडाने का। . अरे ओ लेट लतीफ इतना भी शुक्र मत मनाना भगवान का राहुल से जीतना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है। ( राहुल पेड़ के पीछे छिपा अपने अंदाज में बोल रहा था।) . #my_happiness