इम्तिहाँ ज़िंदगी का बदस्तूर जारी है .. खुद पर रही अब कहाँ इख़्तियारी है इम्तिहाँ ज़िंदगी का बदस्तूर जारी है मेरे उजालों का हाल कहूँ तो क्या कहूँ हवादार कमरे में रखी शमा बेचारी है बताओ तुम ही कहां ये रुख ले जाऊं आइनों ने यहां मुझे ठोकर सी मारी है वजूद के कतरे रहे खाब के ही दरम्यां हकीकत में शख्सियत तन्हा गुज़ारी है सौ सौ समंदर सूख गए मेरी हसरत से ये किस कदर प्यास का पैमाना भारी है शब्दार्थ - इख़्तियार - अधिकार = इख़्तियारी - अधिकार होने का भाव बदस्तूर - पहले ही तरह बिना रुके शमा - मोमबत्ती रुख - चेहरा वजूद - अस्तित्व शख्सियत - व्यक्तित्व , अस्तित्व हसरत - न पूरी होने वाली इच्छा , महत्वाकांक्षा पैमाना - मापदंड ( scale ) ©Vishal Sharma #ज़िंदगी_इम्तिहान_लेती_है