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Vishal Sharma

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Vishal Sharma

ये जो आज़ादी मुझे मिली है 
कमी एक इस में भी खली है

भगत आज़ाद सुखदेव बिस्मिल 
रहे केवल क्यों जुबां पे शामिल 
सुनके अहिल्या मनु की दास्तां
ढूंढा क्यों नहीं मैंने कोई रास्ता 
दूर अब भी क्यूं इनकी गली है 
ये जो आज़ादी मुझे मिली है 
कमी एक इस में भी खली है 

अब तक क्यों बड़े ही चाव से 
पेश आता रहा मैं भेदभाव से 
अपने पराये के इस खेल में 
हो गया दूर दिलों के मेल से 
अब भी मन में ये खलबली है 
ये जो आज़ादी मुझे मिली है 
कमी एक इस में भी खली है 

औरों के दुख से हो अजनबी 
रहा खोया खुद में मैं मतलबी  
नज़रें ज़िम्मेदारियों से चुराकर 
रहा जानवर इंसानों में आकर 
भोर होने पे भी आंख न मली है
ये जो आज़ादी मुझे मिली है 
कमी एक इस में भी खली है  

छुपे जो मुझे मंज़र दिखला देना 
मायने आज़ादी के सिखला देना 
आज़ादी जो सच्ची जान पाऊंगा 
खुद को भी तब पहचान जाऊंगा 
कह सकूंगा के आज़ादी फली है
ये जो आज़ादी मुझे मिली है 
कमी एक इस में भी खली है

©Vishal Sharma #आज़ादीकेमायने 

#Independence
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Vishal Sharma

था जो कल माना है कि वो आज नहीं 
क्या हुआ जो गीतों में वो आवाज़ नहीं 
दौर नगमों का भी इक दिन घर आएगा 
आने वाला कल देखना बेहतर आएगा 

है रात जो काली फिर से पूनम होगी   
लिए तेरे जिसमें न रोशनी कम होगी 
चांद नूरानी आकर पास गुज़र जाएगा 
आने वाला कल देखना बेहतर आएगा 

लाएगा उजाला भी दिन का मोड़ वो 
राहों को तेरी जाएगा तुझसे जोड़ जो 
बनके रहबर उसका कतरा हर आएगा  
आने वाला कल देखना बेहतर आएगा 

है बह रही खिलाफ तेरे आज हवा जो 
हो जाएगी तेरी ही सबसे बड़ी दवा वो 
शिफा ज़िंदगी को उसमें नज़र आएगा 
आने वाला कल देखना बेहतर आएगा  

लेने दो करवट वक्त को जो ले रहा है 
मौका ये दरअसल खुद को दे रहा है
होगा सोना जो आग में तपकर आएगा 
आने वाला कल देखना बेहतर आएगा 


नग़मा - Melody , song 
नूरानी - luminous
रहबर - guide , leader 
शिफा - cure , treatment

©Vishal Sharma #Morning
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Vishal Sharma

झरोखे से आंखों की जो निकला ही नहीं
आके नैनों में सफर जिसने बदला ही नहीं 
टीस जाने कैसी कैसी है मचाता 
एक आंसू जो रह गया 

देता परदे भिगो अचानक ही दीदों के 
रख सामने लम्हें सैकड़ों हां अतीतों के  
दरिया रेत तक को देखो बनाता 
एक आंसू जो रह गया 

रहके आंख में जो न पाता ये मंज़िल 
पत्थर को सीने के बना के तब दिल 
पतझड़ो में भी बसंत दिखाता 
एक आंसू जो रह गया 

हो जाऊं जो नींद बन जाए खाब ये 
हर पहलू मेरा इस से यूं बेनकाब है 
शहर अपने मुझे रात भर घुमाता 
एक आंसू जो रह गया 

ये तेरी ये मेरी ये सबकी ज़िन्दगानी 
होती जिसमें उस एक आंसू कहानी 
उमर भर के लिए हां रह ही जाता
एक आंसू जो रह गया .. 

एक आंसू जो रह ही गया ..

©Vishal Sharma #NationalSimplicityDay
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Vishal Sharma

Agar aaj hum university mein hote ..

Kitna kuchh kahte kitna kuchh sunte 
Agar aaj hum university mein hote 

Pahli baar sa aakhiri baar sabko dekhte 
Sau lafzo mein kaid ek muskaan sabko bhejte 
Safar ke aakhiri kadam saath chal rhe hote 
Agar aaj hum university mein hote 

Kuchh bunte taarife to kuchh uthaane de jaate 
Aur nhi to chalte chalte gungunaate taraane de jaate 
Haan har kisi ki taal se taal mila rahe hote 
Agar aaj hum university mein hote 

Vo paper se pahle tarah tarah ke plan 
Banaate 
Aakhiri baar hai milna kahan bas yahi soche jaate 
Bhale phir answers kitne bhi galat kyu na hote 
Agar aaj hum university mein hote 

Par waqt ye is kadar khilaaf apne bah gaya 
Ke kona dil ka bas kaash kaash karte rah gaya 
Varna yaadein hum bhi is din anginat sanjote 
Agar aaj hum university mein hote

©Vishal Sharma

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Vishal Sharma

अल्फ़ाज़ों से परे ये कैसा मंज़र दिख रहा है
डर के चहरे पे भी यहां इक डर दिख रहा है 

मुलाकातों में लोग मुस्कुराते नहीं आजकल
परदा सा कोई हर पल लब पर दिख रहा है

हां ये शहर कैसे यकायक अनजाना हो गया
पहले से सब कुछ यहाँ हट कर दिख रहा है 

यूं शक है तमाम ज़माने का तमाम ज़माने पे
के सबके हाथों में सबको नश्तर दिख रहा है

है ये कैसी इब्तिदा जिसकी कोई इंतिहा नहीं 
न ही रस्ता इधर और न ही उधर दिख रहा है

be alert .. be safe

©Vishal Sharma #covidindia
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Vishal Sharma

कोफ्त दिल से जुबां से आह निकली जा रही है 
ज़िंदगी क्यूं हाथों से सरे राह निकली जा रही है 

आया ये मौसम कैसा हाशिये पे सांस दर सांस है 
जिस्म से जान की देखो चाह निकली जा रही है 

बन गया है वक़्त भी पहलू में अचानक से मेहमाँ 
थामने पर भी लम्हों की बांह निकली जा रही है 

कि अब तो अगले ख्याल के ख्याल से भी है डर 
है तलाश क्या ओ कहां निगाह निकली जा रही है

सोचा न था के दिनों में दिखेगी शबों की स्याही यूं 
न जाने कहाँ उजालों की पनाह निकली जा रही है 

इतने पर भी अगर हो जाए ये इल्म तो अच्छा है 
रोक लो साँसों की जो परवाह निकली जा रही है

©Vishal Sharma #take_care
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Vishal Sharma

इम्तिहाँ ज़िंदगी का बदस्तूर जारी है ..


खुद पर रही अब कहाँ इख़्तियारी है 
इम्तिहाँ ज़िंदगी का बदस्तूर जारी है 

मेरे उजालों का हाल कहूँ तो क्या कहूँ 
हवादार कमरे में रखी शमा बेचारी है 

बताओ तुम ही कहां ये रुख ले जाऊं 
आइनों ने यहां मुझे ठोकर सी मारी है 

वजूद के कतरे रहे खाब के ही दरम्यां 
हकीकत में शख्सियत तन्हा गुज़ारी है 

सौ सौ समंदर सूख गए मेरी हसरत से 
ये किस कदर प्यास का पैमाना भारी है 


शब्दार्थ - 

इख़्तियार - अधिकार = इख़्तियारी - अधिकार होने का भाव 
बदस्तूर - पहले ही तरह बिना रुके 
शमा - मोमबत्ती 
रुख - चेहरा 
वजूद - अस्तित्व 
शख्सियत - व्यक्तित्व , अस्तित्व 
हसरत - न पूरी होने वाली इच्छा , महत्वाकांक्षा 
पैमाना - मापदंड ( scale )

©Vishal Sharma #ज़िंदगी_इम्तिहान_लेती_है
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Vishal Sharma

कभी नज़्म कभी गीत कभी ग़ज़ल में ढली है 
ओढ़कर रंग देखो कितने ये कविता चली है 

निकली हृदय से तो लिया रूप प्रार्थना का 
हुई जोगन सी ओढा चोला जो उपासना का 
लौटी बनकर स्तुति जो गई ईश्वर की गली है 
ओढ़कर रंग देखो कितने ये कविता चली है 

ममतामयी वात्सल्य में सराबोर भिगा गई 
बनके लोरी जो एक माँ की जुबां पे आ गई 
नींदों में आज तक न कमी माँ की खली है 
ओढ़कर रंग देखो कितने ये कविता चली है 

हुआ नया नवेला नेह का बंधन वो पुराना 
गाया कहीं किसी ने जो राखी का तराना 
दिलाया याद के रहती घर में नन्ही कली है
ओढ़कर रंग देखो कितने ये कविता चली है 

तार दिल के उस पल मेरे भी खिल गए 
गाते हुए जब कोरस यार चार मिल गए 
सौगात मुझे इस से किसी कैसी मिली है 
ओढ़कर रंग देखो कितने ये कविता चली है 

एहसास जो कभी इश्क के रहे अनकहे 
बनकर सफीना वो तेरे ही दरिया में बहे 
होकर के नगमा हाल ऐ दिल से निकली है  
ओढ़कर रंग देखो कितने ये कविता चली है 

#world_Poetry_Day

©Vishal Sharma #World_Poetry_Day
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Vishal Sharma

चराचर में सृष्टि के जो इक रमा है 
शिवा है शिवा है वो हां शिवा है 

नहीं उससे कण कोई रिक्त ज़रा भी 
विभु शिव शम्भु हैं सब में व्यापी 
नेत्रों से जो अपने सब देखता है 
शिवा है शिवा है वो हां शिवा है 

किया था मदन को जिसने नियंत्रण 
दे न सके जिसको मृत्यु निमंत्रण 
वशीभूत जिसके सभी कामना है 
शिवा है शिवा है वो हां शिवा है 

आया था जग पे जब त्रास भारी 
बने नीलकंठ तब ही त्रिपुरारी 
पीकर के विष जो देता सुधा है
शिवा है शिवा है वो हां शिवा है 

शस्त्रों के दाता अनेकों के नेता 
शिव हैं सभी विद्या के प्रणेता 
राम और अर्जुन जिससे महा है 
शिवा है शिवा है वो हां शिवा है 

अंतर में जिसके सभी हैं रसायन 
अनुचर हैं जिसके वादन गायन 
की जिसने नृत्य में भी साधना है 
शिवा है शिवा है वो हां शिवा है 

चराचर में सृष्टि के जो इक रमा है 
शिवा है शिवा है वो हां शिवा है

©Vishal Sharma #happpymahashivratri 

#Shiva
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Vishal Sharma

था जो दौर कभी कोई और ही

थी सहलाती मेरी ज़ुल्फ़ें जब तुम अपने हाथों से 
और भर जाता था नूर इन काली काली रातों में 
अब तो फकत रह गया है गई गुज़री सी बातों में 
था जो दौर कभी कोई और ही 

ख्वाहिशें तुम्हारी करती जो दुआओं का सफर 
मांगती थी मुझे ही वो तेरी हर झुकी सी नज़र 
जाने छीन कौन ले गया अचानक मुझ से पर
था जो दौर कभी कोई और ही 

बड़े बड़े कामों पर भी न देखे कभी टलते
पल फुर्सतों के मेरे लिए ज़रूर थे निकलते 
पर हां देखा उसे भी आंखों से जलते जलते 
था जो दौर कभी कोई और ही 

सांझ मुझ ही से तब तब मुझ ही से सवेरा था 
कहती थी तुम जहाँ जो मेरा जहाँ वो तेरा था 
क्या थी खबर सुबह की शक्ल में वो अंधेरा था 
था जो दौर कभी कोई और ही

©Vishal Sharma #वो_दौर_जिसकी_बात_थी_कुछ_और
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