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नींद से झगड़कर कब आराम मिलता है, निकल पड़ते हैं

नींद  से  झगड़कर  कब आराम मिलता है,
निकल पड़ते हैं हम जिधर जाम मिलता है اا

साँसों   की   लोरियां   मयस्सर  अब  नहीं, 
हाँ  दग़ाबाज़ी  का  हमें इल्ज़ाम मिलता है اا

महफ़िल   में   नशा  है  शराब  है  तो   क्या,
यहीं  आकर तो ज़रा  इकराम  मिलता  है اا

कुछ  करने  को  नहीं दिल बचा है अब मेरा, 
बहोत  मुश्किलों  से हमें  काम  मिलता  है اا

आज़मा लिया 'अबीर' मस्जिदों बुतखानों को,
गरज़ ये के ख़ुदा मिलता है न राम मिलता है اا
 इकराम - इज़्ज़त, बुतखाना - मंदिर

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नींद  से  झगड़कर  कब आराम मिलता है,
निकल पड़ते हैं हम जिधर जाम मिलता है اا

साँसों   की   लोरियां   मयस्सर  अब  नहीं, 
हाँ  दग़ाबाज़ी  का  हमें इल्ज़ाम मिलता है اا

महफ़िल   में   नशा  है  शराब  है  तो   क्या,
यहीं  आकर तो ज़रा  इकराम  मिलता  है اا

कुछ  करने  को  नहीं दिल बचा है अब मेरा, 
बहोत  मुश्किलों  से हमें  काम  मिलता  है اا

आज़मा लिया 'अबीर' मस्जिदों बुतखानों को,
गरज़ ये के ख़ुदा मिलता है न राम मिलता है اا
 इकराम - इज़्ज़त, बुतखाना - मंदिर

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abeersaifi2279

Abeer Saifi

New Creator

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