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फूंक दे जो मानस भैया,खुद को ही वो फूंक चुके हैं। ज

फूंक दे जो मानस भैया,खुद को ही वो फूंक चुके हैं।
जीवन सार आदर्श मर्यादा अय्याशी में धूंक चुके हैं।

जिसने राम को समझा नहीं वो तुलसी वाणी क्या जानेगा।
मूर्ख नाराधाम  पापी कौरव कैसे नारायण को पहचानेगा।

हर जुग में दैत्य उपस्थित होते दुनियादारी पर हैं रोते।
हर जुग राम पधारेंगे फिर सबके पापों को हैं धोते।।

गंगा जिसको पावन करे न वो मन का पातक है भारी।
ज्ञान को आग लगाए जग में उस सा कौन कहो व्यभिचारी।।

माफ करो है जगत पिता ये पुत्र हुए है कुल अंगारी।
झार के पेड़ से दूषित होती सुगंधित फूलों की भी क्यारी।

निर्भय चौहान

©निर्भय चौहान
  #Books  Madhusudan Shrivastava Shiv Narayan Saxena Varun.. *: ℘ཞıყąŋʂɧų ʂɧąཞɱą :* Jajbaat-e-Khwahish(जज्बात)