जानें क्यूं उसका ख्याल अब दिल मे बसर नही करता जो दिलों–दिमाग में वो है क्यूं स्याही में सफ़र नही करता यूं तो ठुकरा दी थी तुमने हर इक अर्जी हमारी ऐ खुदा काश! उसे भूलने की मुझे दुआ नज़र नही करता शौक़–ए–सुख़न का ये मर्ज कुछ ऐसा है कि ख्याल जब तलक ना आए, दवा नींद का असर नही करता यारों कोई तदबीर निकालो वो शख़्स इतना बरहम भी नही क़ासिद रखता है मेरी नज़रों पर, पर मुझको ख़बर नही करता हो कोई बात दिल में अगर तो छुपाया ना करो घाव जख्मों का बातों से ज्यादा असर नही करता यूं ही नही भंवरे फूलों पर इठलाते है गर लम्स मिले ना उनका, खिला समर नही करता यूं तो चाहनेवाले इस ‘कर्ण’ के कईं और भी चेहरे है पर तुमसा कोई और इस दिल में बसर नही करता।— % & बसर करना– गुजारा करना नज़र करना– देना सुख़न– शायरी मर्ज– राेग तदबीर– उपाय बरहम– नाराज़ क़ासिद– संदेशवाहक लम्स– स्पर्श