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यह भूख है साहब,जो घर छुड़वाती है! कभी अपनो से दुर,

यह भूख है साहब,जो घर छुड़वाती है!
कभी अपनो से दुर, तो कभी अपनों को दूर ले जाती हैं ! 
हमको भी घर की बहुत याद आती हैं,
पर यह भूख है ना साहब,जो घर से दुर नोकरी करवाती है!
हमको भी मम्मी की याद आती है,दादा-दादी की कहानीयाँ सताती है! 
पर यह भूख है ना साहब, जो पापा की परछाई से दुर ले जाती हैं!
 कभी भाई बहन की याद रुलाती है, 
तो कभी बच्चों की किलकारी कानों में गुंज जाती है! 
पर यह भूख है ना साहब जो दूर शहर पढ़ने भिजवाती है!
कभी हाथों से खाना बनवाती है, कभी किराये के कमरे में केद करवाती है! 
यह भूख ही तो नोकरी के सपने दिखाती है! 
पर नोकरी के सपने पर बेरोजगारी बाजी मार जाती है! 
इन बेरोजगारों की आंखें सरकार पर टिक जाती है, 
ओर जनादेश की सरकार चंद पैसों में बिक जाती हैं! 
सपनों से सजी यह महफिल जिन्दगी कहलाती है! 
यह भूख ही तो है साहब जो सुन्दर सपने दिखाती है! 
भगवती लाल गेहलोत #bhukh
यह भूख है साहब,जो घर छुड़वाती है!
कभी अपनो से दुर, तो कभी अपनों को दूर ले जाती हैं ! 
हमको भी घर की बहुत याद आती हैं,
पर यह भूख है ना साहब,जो घर से दुर नोकरी करवाती है!
हमको भी मम्मी की याद आती है,दादा-दादी की कहानीयाँ सताती है! 
पर यह भूख है ना साहब, जो पापा की परछाई से दुर ले जाती हैं!
 कभी भाई बहन की याद रुलाती है, 
तो कभी बच्चों की किलकारी कानों में गुंज जाती है! 
पर यह भूख है ना साहब जो दूर शहर पढ़ने भिजवाती है!
कभी हाथों से खाना बनवाती है, कभी किराये के कमरे में केद करवाती है! 
यह भूख ही तो नोकरी के सपने दिखाती है! 
पर नोकरी के सपने पर बेरोजगारी बाजी मार जाती है! 
इन बेरोजगारों की आंखें सरकार पर टिक जाती है, 
ओर जनादेश की सरकार चंद पैसों में बिक जाती हैं! 
सपनों से सजी यह महफिल जिन्दगी कहलाती है! 
यह भूख ही तो है साहब जो सुन्दर सपने दिखाती है! 
भगवती लाल गेहलोत #bhukh