किस्मत के सिक्के उछाले थे चाहतों ने, मगर हर दफ़ा बस ख़ाली ही पहलू निकलता। जो नाम था लिखा किसी के लबों पे कल तक, वही नाम अब अजनबी सा मचलता। साँसों में थी कभी जिसकी ख़ुशबू बसी, अब उसी की यादों से दिल जलता। अधूरी मोहब्बत का अंज़ाम पूछ मत, हर रोज़ एक ख़्वाब राख सा बिखरता। जो बातें कभी रूह तक थीं समाई, अब उनकी गूँज भी धुंधला सा चलता। सुकून था जिसका पहलू कभी, अब उसी की यादों में दिल मचलता। दिल के आईने में वो तस्वीर अब भी है, मगर हर रोज़ धुंध का परदा सा पड़ता। कभी जो था दर्द का मरहम कोई, आज वही जख़्म बनकर उभरता। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर