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जून में बरसते हो तो ही इश्क़ से लगते हो , ये अप्रै

जून में बरसते हो तो ही इश्क़ से लगते हो ,
ये अप्रैल में तुम्हे देखना बर्बादी सा लगता है ।

खिड़की से ताकते रहते हो 
आदत में बिगड़े से लगते हो ,
ऐसा छुप कर देखना तुम्हारा पहरेदारी सा लगता है। 

जाने का वक़्त तय ना हो
तो ही अपने से लगते हो ,
ये थोड़ा थोड़ा तुमसे मिलना हिस्सेदारी सा लगता है। 

बिजली की तरह चमकते हो 
तो ही अच्छे लगते हो ,
ये बुझता हुआ तुम्हे देख बोहोत भारी सा लगता है । 

बादल ठहरा हुआ है 
तो ही इश्क़ में लगते हो ,
ऐसे बारिश में भीगना किसे समझदारी सा लगता है ।

जो कुछ कहना हो तो कह दो 
यू चुप चुप सदमे में लगते हो ,
ऐसे जाना तुम्हारा मौसम बदलने की तैयारी सा लगता है ।

जून में बरसते हो तो ही इश्क़ से लगते हो ,
ये अप्रैल में तुम्हे देखना बर्बादी सा लगता है ।
                                  - Jalaj dewda जून ।
जून में बरसते हो तो ही इश्क़ से लगते हो ,
ये अप्रैल में तुम्हे देखना बर्बादी सा लगता है ।

खिड़की से ताकते रहते हो 
आदत में बिगड़े से लगते हो ,
ऐसा छुप कर देखना तुम्हारा पहरेदारी सा लगता है। 

जाने का वक़्त तय ना हो
तो ही अपने से लगते हो ,
ये थोड़ा थोड़ा तुमसे मिलना हिस्सेदारी सा लगता है। 

बिजली की तरह चमकते हो 
तो ही अच्छे लगते हो ,
ये बुझता हुआ तुम्हे देख बोहोत भारी सा लगता है । 

बादल ठहरा हुआ है 
तो ही इश्क़ में लगते हो ,
ऐसे बारिश में भीगना किसे समझदारी सा लगता है ।

जो कुछ कहना हो तो कह दो 
यू चुप चुप सदमे में लगते हो ,
ऐसे जाना तुम्हारा मौसम बदलने की तैयारी सा लगता है ।

जून में बरसते हो तो ही इश्क़ से लगते हो ,
ये अप्रैल में तुम्हे देखना बर्बादी सा लगता है ।
                                  - Jalaj dewda जून ।
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Jalaj Dewda

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जून । #poem