जून में बरसते हो तो ही इश्क़ से लगते हो , ये अप्रैल में तुम्हे देखना बर्बादी सा लगता है । खिड़की से ताकते रहते हो आदत में बिगड़े से लगते हो , ऐसा छुप कर देखना तुम्हारा पहरेदारी सा लगता है। जाने का वक़्त तय ना हो तो ही अपने से लगते हो , ये थोड़ा थोड़ा तुमसे मिलना हिस्सेदारी सा लगता है। बिजली की तरह चमकते हो तो ही अच्छे लगते हो , ये बुझता हुआ तुम्हे देख बोहोत भारी सा लगता है । बादल ठहरा हुआ है तो ही इश्क़ में लगते हो , ऐसे बारिश में भीगना किसे समझदारी सा लगता है । जो कुछ कहना हो तो कह दो यू चुप चुप सदमे में लगते हो , ऐसे जाना तुम्हारा मौसम बदलने की तैयारी सा लगता है । जून में बरसते हो तो ही इश्क़ से लगते हो , ये अप्रैल में तुम्हे देखना बर्बादी सा लगता है । - Jalaj dewda जून ।