योगा दिवस: दोहे।। योग बड़ा अनमोल है, मत जाना तुम भूल। जीवन में शामिल करो, ये है जीवन मूल।। जो जीने की लालसा, रोज करो तुम योग। तनमन सब निर्मल करे, कैसा रोगी रोग। पुरखे थे कह कर गए, बाँध चलो तुम गाँठ। पश्चिम भी पूरब हुआ, बैठ न जोहो बाट।। चेतन जो संसार है, योग रहा आधार। क्यूँ जीवन तुम भागते, योग छुपा है सार।। सृष्टि योग है आतमा, क्यूँ तकता आकाश। कस्तूरी मृग नाभि है, ढूँढ़ बितायों साँस।। ©रजनीश "स्वछन्द" ©रजनीश "स्वच्छंद" #काव्ययात्रा_रजनीश