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............. (((चुनरी)))जिसके मायने शायद ही आज कि

............. (((चुनरी)))जिसके मायने शायद ही आज किसीको पता हैं, जिसको आजकल लड़के या लड़कियां सिर्फ एक औरत का सर ढकने और छाती को ढकने का एक मात्र कपड़ा ज़्यादा समझते है,या फिर इसको औरत की इज्जत के साथ जोड़कर देखते है but इसका एक और पहलू भी है जो शायद कोई ही समझता या याद करता हो और वो मैं आपको बताता हूँ,ये एक कपड़ा या माँ बहन की ही साथी नही बल्कि हम सबके बचपन की चाहे वो लड़का हो या लड़की हम सबकी साथी रही है,मुझे थोड़ा सा ही सही पर जितना भी याद है मैंने लिखने की कोशिश की है,कैसे माँ बचपन में चुनरी ओढा कर चारपाई पर सुला देती थी, हमारा चेहरा ढकती थी कि मखियाँ तंग ना करे,या चारपाई पर झूला बनाकर या कभी पेड़ के दो तनों पर लटकाकर झूला बना देती थी जब खेत में होते थे, हमको चुनरी में सुलाकर झुलाती थी,और कोई न कोई खाने का सामान दादी या माँ की चुनरी में बंधा होता था जो कुछ देर बाद हमको दे देती थी खाने को,कभी इदर उदर जाते माँ के साथ तो चुनरी पकड़े पीछे पीछे होते,तार पर चुनरी सुखाने रखी होती तब खेलते  रहते इसके साथ खींच तान का खेल खेलते,या और भी बहुत से खेल होते,कभी बीमार या ज्यादा रोते फिर गोद में सुलाये रखती माँ चुनरी में लिपटाकर और थपेडती रहती लोरियां सुलाती रहती,कई बार तो सोते सोते चुनरी का लड़ खाते रहते.कितनी ही शरारतें करते इस से कभी कमर में बांधते कभी खुद सर पर ले लेते,कभी कहीं गिर पड़ते या रोते फिर इसी चुनरी से hamare आँसू साफ करती, khud भी थक हार अपने चेहरे की गर्मी इसी से पोंछती,कभी चुनरी कहि सूखती उड़ जाती तो पीछे भागे जाते उठाने को but आज ऐसा कुछ भी नही दिखता क्योंकि चुनरी गायब होती जा रही तो बच्चों में भी वो संस्कार नही आते अब कुछ चीजें तो सिर्फ बातों में ही रहती जा रही इसी वजह से आजकल छेड़छाड़ ज्यादा क्योंकि किसीको इसके मायने नही पता न लड़की ना लड़का,चुनरी तो दूर अब तो प्यार मोहब्बत के नाम पर कपड़े भी एक पल में उतार लिए जाते,वो बात अलग यहाँ बात चुनरी की थी तो वही बात करते so please इसको संभालिये और कदर करिये ये सिर्फ एक कपड़ा नही जो सिर्फ औरत से रिलेटेड है ये मर्द को पालने वाली एक तरह की दूसरी माँ ही है,उसकी माँ की बहन की परिवार की इज्जत है।तो कदर करिये।❤️✍️

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#world_health_day  Pragati singh Anamika Kumari Aarti 🎻🎻🎻 Pritika Gahlot Bebak Shanaya  बेबाक शनाया  Satyaprem Upadhyay
............. (((चुनरी)))जिसके मायने शायद ही आज किसीको पता हैं, जिसको आजकल लड़के या लड़कियां सिर्फ एक औरत का सर ढकने और छाती को ढकने का एक मात्र कपड़ा ज़्यादा समझते है,या फिर इसको औरत की इज्जत के साथ जोड़कर देखते है but इसका एक और पहलू भी है जो शायद कोई ही समझता या याद करता हो और वो मैं आपको बताता हूँ,ये एक कपड़ा या माँ बहन की ही साथी नही बल्कि हम सबके बचपन की चाहे वो लड़का हो या लड़की हम सबकी साथी रही है,मुझे थोड़ा सा ही सही पर जितना भी याद है मैंने लिखने की कोशिश की है,कैसे माँ बचपन में चुनरी ओढा कर चारपाई पर सुला देती थी, हमारा चेहरा ढकती थी कि मखियाँ तंग ना करे,या चारपाई पर झूला बनाकर या कभी पेड़ के दो तनों पर लटकाकर झूला बना देती थी जब खेत में होते थे, हमको चुनरी में सुलाकर झुलाती थी,और कोई न कोई खाने का सामान दादी या माँ की चुनरी में बंधा होता था जो कुछ देर बाद हमको दे देती थी खाने को,कभी इदर उदर जाते माँ के साथ तो चुनरी पकड़े पीछे पीछे होते,तार पर चुनरी सुखाने रखी होती तब खेलते  रहते इसके साथ खींच तान का खेल खेलते,या और भी बहुत से खेल होते,कभी बीमार या ज्यादा रोते फिर गोद में सुलाये रखती माँ चुनरी में लिपटाकर और थपेडती रहती लोरियां सुलाती रहती,कई बार तो सोते सोते चुनरी का लड़ खाते रहते.कितनी ही शरारतें करते इस से कभी कमर में बांधते कभी खुद सर पर ले लेते,कभी कहीं गिर पड़ते या रोते फिर इसी चुनरी से hamare आँसू साफ करती, khud भी थक हार अपने चेहरे की गर्मी इसी से पोंछती,कभी चुनरी कहि सूखती उड़ जाती तो पीछे भागे जाते उठाने को but आज ऐसा कुछ भी नही दिखता क्योंकि चुनरी गायब होती जा रही तो बच्चों में भी वो संस्कार नही आते अब कुछ चीजें तो सिर्फ बातों में ही रहती जा रही इसी वजह से आजकल छेड़छाड़ ज्यादा क्योंकि किसीको इसके मायने नही पता न लड़की ना लड़का,चुनरी तो दूर अब तो प्यार मोहब्बत के नाम पर कपड़े भी एक पल में उतार लिए जाते,वो बात अलग यहाँ बात चुनरी की थी तो वही बात करते so please इसको संभालिये और कदर करिये ये सिर्फ एक कपड़ा नही जो सिर्फ औरत से रिलेटेड है ये मर्द को पालने वाली एक तरह की दूसरी माँ ही है,उसकी माँ की बहन की परिवार की इज्जत है।तो कदर करिये।❤️✍️

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(((चुनरी)))जिसके मायने शायद ही आज किसीको पता हैं, जिसको आजकल लड़के या लड़कियां सिर्फ एक औरत का सर ढकने और छाती को ढकने का एक मात्र कपड़ा ज़्यादा समझते है,या फिर इसको औरत की इज्जत के साथ जोड़कर देखते है but इसका एक और पहलू भी है जो शायद कोई ही समझता या याद करता हो और वो मैं आपको बताता हूँ,ये एक कपड़ा या माँ बहन की ही साथी नही बल्कि हम सबके बचपन की चाहे वो लड़का हो या लड़की हम सबकी साथी रही है,मुझे थोड़ा सा ही सही पर जितना भी याद है मैंने लिखने की कोशिश की है,कैसे माँ बचपन में चुनरी ओढा कर चारपाई पर सुला देती थी, हमारा चेहरा ढकती थी कि मखियाँ तंग ना करे,या चारपाई पर झूला बनाकर या कभी पेड़ के दो तनों पर लटकाकर झूला बना देती थी जब खेत में होते थे, हमको चुनरी में सुलाकर झुलाती थी,और कोई न कोई खाने का सामान दादी या माँ की चुनरी में बंधा होता था जो कुछ देर बाद हमको दे देती थी खाने को,कभी इदर उदर जाते माँ के साथ तो चुनरी पकड़े पीछे पीछे होते,तार पर चुनरी सुखाने रखी होती तब खेलते रहते इसके साथ खींच तान का खेल खेलते,या और भी बहुत से खेल होते,कभी बीमार या ज्यादा रोते फिर गोद में सुलाये रखती माँ चुनरी में लिपटाकर और थपेडती रहती लोरियां सुलाती रहती,कई बार तो सोते सोते चुनरी का लड़ खाते रहते.कितनी ही शरारतें करते इस से कभी कमर में बांधते कभी खुद सर पर ले लेते,कभी कहीं गिर पड़ते या रोते फिर इसी चुनरी से hamare आँसू साफ करती, khud भी थक हार अपने चेहरे की गर्मी इसी से पोंछती,कभी चुनरी कहि सूखती उड़ जाती तो पीछे भागे जाते उठाने को but आज ऐसा कुछ भी नही दिखता क्योंकि चुनरी गायब होती जा रही तो बच्चों में भी वो संस्कार नही आते अब कुछ चीजें तो सिर्फ बातों में ही रहती जा रही इसी वजह से आजकल छेड़छाड़ ज्यादा क्योंकि किसीको इसके मायने नही पता न लड़की ना लड़का,चुनरी तो दूर अब तो प्यार मोहब्बत के नाम पर कपड़े भी एक पल में उतार लिए जाते,वो बात अलग यहाँ बात चुनरी की थी तो वही बात करते so please इसको संभालिये और कदर करिये ये सिर्फ एक कपड़ा नही जो सिर्फ औरत से रिलेटेड है ये मर्द को पालने वाली एक तरह की दूसरी माँ ही है,उसकी माँ की बहन की परिवार की इज्जत है।तो कदर करिये।❤️✍️ @Pragati singh @Anamika Kumari @Aarti 🎻🎻🎻 @Pritika Gahlot Bebak Shanaya बेबाक शनाया @Satyaprem Upadhyay">#NojotoFilms#trend#PoetryOnline#womens#nojotorap#nojotovideos#urdu#Punjabi#Music #world_health_day Pragati singh Anamika Kumari Aarti 🎻🎻🎻 Pritika Gahlot Bebak Shanaya बेबाक शनाया Satyaprem Upadhyay #शायरी